देखो रास्ता तो वही लोग खोज सकते हैं जो भटके हैं , जिनको भटकने की खबर नहीं उनको मंज़िल से क्या!
पिछले दिन मनाली के चक्कर में हम लोग जादुई बालकनी से नीचे उतर आए. नीचे उतर कर भी नज़ारे कम नहीं थे हमारे लिए. ब्यास नदी के किनारे-किनारे वशिष्ठ से मनाली का एक गोल चक्कर लगाया. कसम से ऐसी किसी शाम, शान्ति से मनाली शहर का चककर लगाना भी मन के सुकून के लिए बहुत है. ऐसा नहीं है कि हमारी ही बात आख़िरी है, पर तब भी नज़ारा तो देखो जनाब! दिन भर हल्की-हल्की बूंदा-बांदी के बाद मौसम एकदम से खुला था, पैदल चलकर ही मज़ा आ गया.
जोगणी वाटरफ़ॉल की एक झलक तो हमको वशिष्ठ गांव से पिछले दिन ही मिल गई थी. पर जब हम ब्यास नदी पार करके दूसरी तरफ गए तब हमको वशिष्ठ गांव का एक अलग नज़ारा देखने को मिला था. हमें अपने अड्डे के पीछे वाला पहाड़ नज़र आया, साथ कई सारे छोटे-बड़े झरने क्लिफ़ से छलांग लगाते दिखे. इनमें से असली जोगणी वाटरफ़ॉल कौन सा है, अपने को नहीं समझ आया. पर अपने को इन झरनों तक पहुँचना था तो पैदल चलते वक्त चर्चा भी इसी बात पर चल रही थी कि कहां से जाया जाए. प्रणव पहाड़ दिखाकर बोलता है कि अगर क्लिफ़ पकड़कर चलते जाएं तो ये सारे झरने साथ देखने को मिल सकते हैं. कौन से? देख लो —
जोगणी वाटरफ़ॉल तक पहुंचने का सीधा रास्ता तो वशिष्ठ गांव के स्कूल के बगल से जाता है. पर पूरी रात अपने दिमाग में पीछे वाले पहाड़ की क्लिफ़ वाला रास्ता और एक साथ सारे झरने देखने का लालच भर गया. रात भर इंतज़ार के बाद, सुबह उठते ही, हमने इसी सुध में जूतों के फीते ताने और पीछे वाले पहाड़ की चढ़ाई शुरू कर दी. कुछ दूर तक तो सेब के खेतों से टापते हुए चलते रहे. जैसे ही खेत खत्म हुए, रास्ता गायब हुआ और हमारे लग गए. बारिश में बढ़ी हुई घास की वजह से कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था, पर उसी घास को पकड़कर क्लिफ़ तक चढ़ने का कॉन्फ़िडेंस भी हमको लगातार मिल रहा था. एक-दूसरे की देखम- देख, अपन लोग लाइन से पहाड़ पर चढ़ रहे थे, पर आध घंटे के अंदर ऐसे क्लिफ़ तक पहुंचने का सारा नशा उतर गया. हमने वापस उतरना ठीक समझ और सीधा नीचे वशिष्ठ मार्किट आ गए. अब यहीं से जोगणी वॉटरफॉल जाना था.
होमस्टे से नीचे उतरकर वशिष्ठ में चाय ही पी रहे थे कि बारिश का मौसम होने लगा. पर आज अपने को जोगणी फॉल हर हालत में देखना ही था फिर चाहे बारिश हो या खुला आसमान। अपन लोगों ने अपना थैला उठाया और बारिश वाला चोला पहन कर निकल लिए. वशिष्ठ गांव के अंत में पहुंचने से पहले गांव का सरकारी स्कूल आता है, उसके ठीक बगल से एक रास्ता ऊपर की ओर निकलता है. बस यही रास्ता है जो आपको सीधा जोगणी फॉल तक ले जाता है. रास्ते में बारिश होने लगी, पर अपन लोग नहीं रुके. चिनार के पेड़ों से बारिश भी ऐसे छन कर आ रही थी कि भीगना तो दूर, ऐसे में चलने का और मज़ा आ रहा था. जंगल से होते हुए करीब आधे घंटे में हम लोग जोगणी वॉटरफॉल के एरिये में दाखिल हो गए. सर उठाकर ऊपर देखा तो सामने वाला पहाड़, बारिश में, हमारे सिर पर गिरने को हो रखा था. जोगणी वॉटरफ़ॉल पानी का कम और दूध का झरना ज्यादा दिख रहा था.
नज़ारे को आँखों में कैद करके हम लोग जोगणी फाल के मुहाने की और बढे. पांच-दस मिनट आगे चले होंगे कि पूरा झरना हमको बराबर दिखने लगा. झरने पर खड़े होकर हम सोच में पड़ गए क्यूंकि अपने को इस बात का यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही झरना है जो हमको नीचे से दिख रहा था. ऑफ़कोर्स, झरना तो वही था, पर यह पॉइंट वो नहीं था जिस पर हमें पहुंचना था. हमारा माथा ठनका ही था कि तेज बारिश होने लगी. सिर पर पेड़ तो अब थे नहीं, हमने एक बड़े तिरपाल की ओट ली। उसी तिरपाल के नीचे एक फिरंगी फैमिली भी बैठी हुई थी. बच्चे और बड़े मिलाकर कुल दस-बारह लोग थे, ये लोग फुल तैयारी के साथ आए थे. बारिश का मौका मिलते ही, इन्होने अपनी पिकनिक चालू कर दी और हमने अपनी। बम-भोले करते ही एक नमकीन बेचने वाला भाई साथ बैठ गया. हमने उससे तहक़ीक़ात की कि जोगणी फॉल का वो पॉइंट कहां है जो नीचे से नज़र आता है. भाई ने कन्फर्म किया कि उस पॉइंट का तो पता नहीं पर आगे असल जगह है – जोगणी वॉटरफॉल के पीछे गुफा-जैसा एरिया है, वहीं पहुंचो। अपने को बस यही सुनना था. अब बस बारिश बंद होने का इंतज़ार था.
हमारी एक टोली अभी पीछे ही थी, वो लोग वशिष्ठ मार्किट में ड्रोन उड़ाने लग गए थे. कुछ देर बाद बारिश बंद हुई तो हमने सोचा की वेट करें, पर तब तलक दिमाग में जोगणी वॉटरफॉल और उसके पीछे की गुफा की तस्वीर दिमाग में बन चुकी थी. हमसे रुका नहीं गया और अपन तुरंत निकल लिए. असल रास्ता अब शुरू हुआ था, चढ़ाई खड़ी थी और बारिश के बाद सब कुछ फिसलन-भरा हो रखा था. कदम पे कदम जचाते हुए अपन लोग आगे बढ़ते रहे, बादल भी अब धीरे धीरे छंटने लगे थे. चलते हुए करीब आधा घंटा हो गया था पर जोगणी फॉल के पानी की आवाज़ सुनने में नहीं आ रही थी. रास्ते में लोग वापिस आते हुए मिल रहे थे, तो बात तो पक्की थी कि जरूर कोई खतरनाक खोपचा है. इसी सुध में चल रहे थे कि एक कोने पर आते ही कानों में पानी की आवाज़ पड़ी और कुछ डंग आगे धरते ही नज़ारा-ए-ख़ास हमारी आँखों के सामने था.
जोगणी फॉल का यह पॉइंट जैसे एक अलौकिक-सी जगह है. आपको आपकी आँखों के सामने पहाड़ी से इतना पानी कूदता दिखेगा कि आप भौंचक्के रह जायेंगे। पल भर में आपकी सारी सोच, सारे ख्याल, सारी फिलॉस्फी झरने की आवाज़ के बहाव में बह जाएंगी। आप नाम ही गौर करके देख लो,समझ जाओगे। ‘जोगणी’ का मतलब ढूंढने पर पता चला कि यह सात फेमिनिन सुपर पावर्स का कंबाइंड फ़ॉर्म है जो पूरे हिमालय के तमाम देवी देवताओं को पावर देता है। लोकल सांस्कृतिक मतलब खोजने पर पता चला कि जोगणी का मतलब चौसठ योगनियों से है। एक अलग शांतिमय एहसास है यहां बैंठना। हम काफी देर शान्ति से यहीं बैठे रहे, तब तक हमारी दूसरी टोली भी पीछे से आ गई. बम-भोले करके हमने सोचा क्यों न वाटरफॉल के पीछे चला जाए. वॉटरफॉल पीछे जाने का प्रॉपर रास्ता बना हुआ है, बात बस थोड़ी हिम्मत और खुराफात की है. हम जोगणी फॉल के पीछे पहुँच तो गए, पर बारिश के मौसम में यहां ज्यादा देर टिक पाना बहुत ही चैलेंजिंग काम है. पानी इतना होता है कि सांस में हवा कम पानी ज्यादा जा रहा होता है. पर फोन रिस्क पर लगाकर हम आपके लिए कुछ तस्वीर तो ले ही आए.
देखो रास्ता तो वही लोग खोज सकते हैं जो भटके हैं और जिनको भटकने की खबर नहीं उनको मंज़िल से क्या. जोगणी वॉटरफॉल की खोज में आज के दिन का भ्रमण, ट्रैकिंग और एडवेंचर पूरा हो गया था. शाम तक अपन लोग अपने होमस्टे पर वापस आ गए और खाना-पीना बनाने में लग गए. कल का प्लान हमारे अंदर पहले से पक रहा था, पर घूमने की लिए हम कहां निकले ये अगले भाग में बताएंगे।