एक हफ़्ते का ट्रेवल आपको क्या क्या दिखा सकता है, ये आप क्या, हम क्या, कोई महानुभव नहीं बता सकता. मनाली से हमप्ता पास पार करने निकले अपने को तीसरा दिन हो गया था. ट्रेक के दौरान हमने पहली रात चीका में बिताई और एक रात हमको बालू का घेरा में रुके हुए हो गई थी. पिछली शाम शुरू हुई बारिश अब भी उतनी ही तेज़ी से हो रही थी जितनी की रात को. चंद्रा भाई की दूकान में बैठे हम अभी भी इस बात का ही जवाब ढूंढ रहे थे कि 15 अगस्त वाली ट्रिप पर अभी और क्या क्या देखने मिलेगा. हमप्ता चोटी पार करना अभी दूर की बात थी. हम लोग अभी बालू का घेरा पर बैठे प्रकृति के अलंकारों से रूबरू हो रहे थे. नए झरने बनना देख रहे थे.
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय |प्रस्तावना
सुबह हमारी आँख खुली तो चंद्रा भाई पहले से उठकर बैठे हुए थे. उनकी नज़रें आसमान पर टिंकी थी. चंद्राभाई का प्रकृति के प्रति लगाव तो हम समझ रहे थे, पर उसकी सीमा का हमें अंदाजा नहीं लगा था. “आप लोग उठकर फ्रेश हो लो, टेंट से निकल कर बायें तरफ जाओगे तो टॉयलेट टेंट दिख जाएगा. मैं तब तक आप लोगों के लिए चाय बनाता हूँ.” — भाई जी को सुबह की राम राम करके हम चाय की मांग करते, उससे पहले ही चंद्रभाई बोल पड़े!
आप तो जानते ही हैं कि चाय बैठकर बातें करना का अच्छा बहाना होती है, ख़ासकर तब, जब बाहर बारिश हो रही हो. न तो मोबाइल नेटवर्क था, न ही बिजली का कोई साधन, हम सब भी चाय के कप लेकर बैठ गए. कुछ किताबें हम जरूर साथ रखते हैं, पर अगर आपको किसी से बात करने का मौका मिल रहा हो, वो भी ऐसे लोगों के साथ जो बातों को एकनॉलेज करना जानते हों, तो कहने और सुनने में मज़ा आता है. नई बातें सुनंने को मिलती हैं और उनसे हमेशा कुछ नया जानने को मिलता है.
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय |भाग – 1
चंद्रा भाई बालू का घेरा पर कब से हैं, दुकान उनकी है, ये सब तो हम पिछली शाम पूछ ही चुके थे. पर चंद्रा भाई कौन हैं, कहां से आते हैं, उनका घर कहां है, ये सब हम अब बातों बातों में पूछने लगे. चंद्रा भाई ज़्यादा बोलने वाले बन्दे नहीं लग रहे थे. लेकिन हम लोग फंसे ही ऐसी सिचुएशन में थे कि करने को और कुछ नहीं था. बाहर जा नहीं सकते थे. बैठकर चाय पर चाय चल पड़ी, साथ किस्से-कहानियों का दौर चल पड़ा.
“बातों का इंजन चालू करने में खाली गरम चाय नहीं लगती, धुंआ भी चाहिए होता है.” — चंद्रा भाई ने इतना बोला और हमारे पास जो थोड़ा बहुत प्रसाद था, वो हमनें उनकी तरफ बढ़ा दिया. बम भोले कर, चिल्लम से धुंए का गुब्बार उड़ाते हुए भाईजी खुलने लगते हैं, उन के गोले की तरह और बस – किस्से बुनते चले गए!
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय |भाग – 2
“भाई जी, देखो मैं उम्र में आप लोगों से बड़ा हूँ, पहाड़ों में बड़ा हुआ, यहां से बाहर गया, चंडीगढ़, दिल्ली तक, फिर वापस यहीं। किसी से कम्पटीशन की बात नहीं है, पर दुनिया मैनें भी देखी है, खूब दर दर भटका हूँ . बहुत घूमा हूँ , बहुत कुछ एक्सपीरियंस किया है. कैफ़े – दारु और नशेबाजी भी ख़ूब की है. पर अब वो टाइम नहीं, न ही ऐसा कुछ करने का मन करता है. अब तो बस एक ही जगह बैठकर ‘रोज’ को देखने रहने का मन करता है. और इसलिए मैं पिछले चार साल से यहीं बालू का घेरा पर बैठा हूँ। ये दुकान ही आपके चंद्रा भाई का अड्डा है ” — बिल्कुल सिंह साहेब माफ़िक़ आँखों में तेज समेटे चंद्रा भाई लाइफ गोल्स सेट करने में लगे थे !
“शुरू के दो साल मैं अपने गांव भी नहीं गया, बर्फ में यहीं रुका। दो भालू और एक स्नो लेपर्ड आते हैं मिलने सर्दी में, यही चंअपने यार दोस्त हैं. चार चार फ़ीट में ये तीनों ये देखकर कि अकेला बंदा बैठा है, पहले तो अटैक भी कर दिया! पर आपके चंद्रा भाई कहाँ कम — बन्दूक निकाल भालू पर तान दिया और वो ससुर दूर ही बैठ गया, हिलने का नाम ही न ले ! मैं दो दिन आग जला के टेंट के बाहर बैठा। अब करता भी क्या, अगर वो टेंट के पास आ जाता तो मैं तबाह हो जाता। लेकिन, है तो बेचारा जानवर ही, और मैं ठहरा इंसान! दो बार साले को खाने को दिया, टेंट से दूर जाकर बचा हुआ खड्डू फेंक देता और फ़िर सिलसिला ऐसा चला कि एक दिन स्नो लेपर्ड भी आ लिया।” — चंद्रा भाई का कॉन्फिडेंस आपके सबसे ताक़तवर डर को लील जाता है!
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय |भाग – 3
आगे कमाने धमाने की भी बातें हुईं – “पिछले साल बर्फ आते ही मैं अपने गाँव, नीचे ओल्ड मनाली से परे, चला गया था. वहां सारा समय आसपास के बच्चों के साथ बिताता हूँ. जितना मैं एक सीजन में अपनी दुकान से कमाता हूँ, उतना काफी है मेरे लिए. शादी के बाद की बात अलग है, लेकिन तब भी मुझे नहीं लगता कि मुझे इससे ज्यादा चाहिए होगा। कमाने को तो मैं, इंडिया हाइक वालों से भी ज्यादा पैसे कमा लूँ यहां से –आठ दस टेंट ही तो लगाने हैं ! बाक़ी आपका चंद्रा भाई अकेला ही काफी है !पर अपना वो सीन नहीं है !”
हम भाई जी को सुन रहे रहे थे. साथ में थोड़ा बहुत अपना एक्सपीरियंस भी शेयर कर रहे थे. घूमने वाले हम चार और चंद्रा भाई. बातों बातों में काफी समय निकल गया. घड़ी के हिसाब से दोपहर का वक़्त था पर बाहर अंधेरा होना शुरू हो गया था. बारिश बिलकुल उसी तेज़ी से गिर रही थी. इतने में आसपास के टेंटो से ट्रेक गाइड दुकान में आ पहुँचते है. उनका अलग सीन मचा हुआ था. मौसम बद से बदतर हो रहा था और उनके कस्टमर उनसे इस बात पर भिड़ रहे थे कि उन्हें ट्रेक करना है. उनका कहना था कि उन्होंने पैसे दिए हैं. अगर हमप्ता पार नहीं किया तो उनके पैसे बर्बाद हो जाएंगे। जान का जोख़िम ट्रेक गाइड को उठाना था, उनको नहीं। ऐसे में ये सब चंद्रा भाई की राय लेने आए थे. इसपर चंद्रा भाई ने साफ़ कह दिया कि ऊपर मौसम बेहद खराब होगा, उनको समझाओ कि जान की बात है, पैसे की नहीं। फिर भी नहीं मानते तो ले जाओ, थोड़ी दूर चल के ख़ुद समझ आ जाएगा. चंद्रा भाई की बात मानकर वे लोग अपने अपने ग्रुप को लेकर बारिश में हमप्ता चोटी की तरफ निकल लिए.
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय |भाग – 4
ऐसे मौसम में हमें ट्रेक नहीं करना था. हम बैठे रहे – बढ़िया कोज़ी होकर. भाई जी ने लंच लगाया और अपने टेंट में जाकर आराम फ़रमाने लगे — ये इनका डेली रूटीन था. खा पी कर हम लोग फिर जम कर बैठ गए. अब आपस में बात करते करते भी बोर हो चुके थे. बारिश होते होते चौबीस घंटे से ज़्यादा हो गया था. एक तरीके से हम लोग क्वारंटाइन हो गए थे. तब हमें यह पता भी नहीं था कि इसे ‘क्वारंटाइन’ होना कहेंगे। हमारी समझ में तो हम बस बारिश में फंसे हुए थे. बारिश ख़त्म तो बंदिश ख़त्म. वो तो भला हो कोरोना देवता का जो आज समझ आ रहा है कि वो ‘क्वारंटाइन लाइफ’ का टीज़र था. हम लोग शांति से बैठे बैठे बारिश की आवाज़ सुन रहे थे कि भाई जी अपने टेंट से बाहर आ गए. नींद कहां आनी थी बारिश के टपटप में.
चंद्रा भाई के आते ही हमने एकबार फिर वही सवाल कर दिया कि बारिश कब तक बंद होगी?
”मुझे नहीं लगता अब बारिश रुकेगी जल्दी, बादल यहीं घूमें जा रहे हैं. चौबीस घंटे हो गए, बारिश हो ही रही है, और हो सकता है कि अगले चौबीस घंटे भी होती रहेगी. कुछ नहीं कह सकते भाई जी. मौसम ज़्यादा ख़राब भी हो सकता है. प्रकृति का जवाब इंसानों के पास कहां है जो आप मुझ से पूछ रहे हो. हम तो बस अंदाजा लगा सकते हैं और इंतज़ार सकते हैं.” — भाई जी ऐसे बोले जैसे सपने में यही देख कर आ रहे थे!
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय |भाग – 5
सुनकर हमको ‘गोदो’ की याद आ गई. अब बारिश जब बंद होगी तब होगी। ऐसी तेज़ बारिश हमने पहले कभी नहीं देखी थी. हमने भाई जी से पूछा — “क्या उन्होंने कभी ऐसा या इससे खराब मौसम देखा है?” इस पर भाई जी का वो डायलाग आता है जो चंद्रा भाई की पर्सनालिटी को एक ही वाक्य में बता देता है — “आप मनाली में किसी भी लोकल से जाकर पूछना कभी कि चंद्रा भाई कहां मिलता हैं. मुझे जानने वाला हर एक बंदा बोलेगा कि ग्लेशियर के पास . चंद्रा भाई मिलेगा तो पहाड़ की चोटी पर, बर्फ के पास. भाई जी मैंने बहुत बहुत दिन बिताए हैं इन पहाड़ों की चोटियों पर! एक से एक डेंजर रूप देखें हैं पहाड़ों के, फंसे भी हैं और मरते-मरते बचे भी हैं. अगर मौसम और नहीं बिगड़ता तो बारिश हो जाएगी बंद. देखने को तो मैंने इससे खतरनाक मौसम भी देखा है और सर्वाइव भी किया है.”
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय |भाग – 6
हमको लगा, चंद्रा भाई हमारी हिम्मत बांध रहे हैं ताकि हम घबराएं न. कुछ रुककर भाई जी फिर बोलते हैं — “पर मुझे एक घटना आज तक याद है. ये मेरे साथ नहीं हुआ था, फिर भी उस दिन को मैं कभी नहीं भूल सकता. मैं पैदल मनाली से लाहौल जाने के लिए निकला था. उस टाइम गाड़ियाँ बहुत काम हुआ करती थी. रास्ते में मुझे कुछ लोग मिल गए जो अपनी भेड़ -बकरियों के साथ लाहौल जा रहे थे. मैं उनके साथ साथ हो लिया। ग्रुप में चलना हमेशा बेहतर रहता है. उस दिन मौसम ठीक नहीं था, बारिश लगी थी. हम धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे. रोहतांग के रस्ते चलते हुए, एक लंबी चढ़ाई के बाद हम लोग बैठ कर आराम कर रहे थे, भेड़- बकरियां पास में ही घास चर रही थीं. अचानक एक लैंडस्लाइड होता है और दो चार को छोड़कर, लगभग सारी भेड़ बकरियां एक ही झटके में सीधा खाई में चली जाती हैं. हम लोग बस देखते रह गए, क्या करते. जिस भाई के सभी जानवर थे वो अपने होश खो बैठा था, पागलों की तरह रोने झटपटाने लगा. उसकी जीवन भर की कमाई उसकी आँखों के सामने ही एक सेकंड में ख़त्म हो गई थी.’’ ये इंसिडेंट इमेजिन करके हमारा माथा घूम गया. जिस बन्दे की भेड़ें मरी थी हमने उसके बारे में जानना चाहा। उसने क्या किया होगा उसके बाद?
चंद्रा भाई — “क्या कर सकता था बेचारा, कुछ भी नहीं। मैंने उसकी थोड़ी हिम्मत बाँधी और बची हुई भेड़-बकरियां लेकर चलने को कहा. पहले तो वो नहीं माना पर बाद में उसने अपने जूते उतारे और अपने सर पर रखकर चलने लगा. उस बंदे ने लाहौल तक पूरा सफ़र नंगे पैर ही तय किया। सारे रास्ते कुछ नहीं बोला, पूछने पर बस एक ही बात कहता जाता कि उसके जानवर इन पहाड़ों, नदी-नालों की बदौलत ही जिंदा थे और आज उन्हीं के भेंट हो गए. प्रकृति की मर्ज़ी है, उसके आगे किसकी चलती है”! यह कहकर भाई जी खाना बनाने में लग गए. रात हो गई थी और बारिश बराबर हो ही रही थी.
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय | पार्ट – 7
खाना खाकर हम लोग फिर बातों में लग गए. दिमाग़ में बस यही आ रहा था कि सुबह उठें तो यह बारिश बंद मिले बस. एक ही जगह पर बैठे बैठे काफी समय हो गया था. हमें टेंट से बाहर निकलना था पर अब सोने का समय हो गया था. जैसे ही सोने के लिए शान्ति से लेटे थे कि मौसम ने एकाएक रंग बदल दिया। बारिश तेज़ हो गई और साथ में तेज़ हवाएं चल पड़ी. चंद्रा भाई भी अभी तक नहीं सोए थे. उनके माथे पर परेशानी दिख रही थी. भाई जी उठे और हमसे पास में पड़ी रस्सी उठाने को कहा. पूरा टेंट आंधी की वजह से उड़ने को हो रहा था. हम लोग टेंट को मजबूती देने के लिए आड़ी-तिरछी रस्सियां बाँधने में लग गए. रात में अगर टेंट में कुछ हो गया तो हम सब की लगी समझो। रात भर मौसम वैसा ही बना रहा. बादलों की गड़गड़ाहट से रात भर आंख खुलती रही. साथ टेंट के उड़ जाने का डर भी लगा रहा.
सुबह जब हमारी आँख खुली तो आंधी-तूफ़ान धीमा पड़ गया था पर बारिश अभी भी हो रही थी. हमप्ता पार करने का हमारा मकसद अब हमें अधूरा लग रहा था. पहला मकसद अब इस बारिश से बचकर सही सलामत घर पहुँचने का था. इंडिया हाइक वालों का ग्रुप जो पिछले दिन ट्रेक करने निकले थे, शाम तक वापस आ चुके थे. उनमें से कुछ लोग बीमार पड़ चुके थे. मौसम ने उनकी इस हद तक ले ली थी, उनमें से कइयों को तो यह उनका अंतिम समय लग रहा था. क्वारंटाइन का आज तीसरा दिन हो गया था. हमको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या होगा। चंद्रा भाई ने हमसे कहा कि आज आज और देख लो, अगर मौसम साफ़ हो जाता है तो सही वरना कल सुबह उठते ही वापिस घर के लिए निकल लेना।
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय | पार्ट – 8
अब ये तो पक्का हो गया था कि हमें अगले दिन हर हालत में बालू का घेरा से निकल लेना था. हालाँकि जाएं किधर, इस पर हमारे मन में आशंकाएं उठ रहीं थी. वापिस मनाली की तरफ जाएं या हमप्ता पार करके लाहौल पहुँच जाएं। नेटवर्क और बिजली भी कहां थी कि अपनी बाकी टीम, जो कि वशिष्ठ में थे, उन से कांटेक्ट कर लेते नीचे का हाल जान लेते। अब सब अगले दिन के मौसम पर निर्भर था. कुछ कुछ करके हमनें क्वारंटाइन का तीसरा दिन भी काट लिया और रात में ही सुबह निकलने की तैयारी करके सो गए. सुबह उठे तो लगा कि बारिश हमारे इरादों पर पानी फ़ेर देगी, पर बाहर रौशनी ज्यादा लग रही थी. लग रहा था कि मौसम साफ़ हो जाएगा। हम लोगों ने जब तक ब्रेकफास्ट किया तब तक बारिश मंदी हो गई थी. बाहर सब पानी से लबालब भरा हुआ था, पहाड़ों से नए नए झरने निकल चले थे. हमने भाई जी से आखिरी बार सलाह ली और फाइनल किया कि हमप्ता पास न जाकर हम लोग वापिस मनाली निकलेंगे। चंद्रा भाई को शुक्रिया कहते हुए, खाने के जितने पैसे बने थे वो हमने भाई जी को दे दिए और दोबारा आने के लिए बोल कर निकल लिए. रास्ते भर हमारा मन गोते खाता रहा. हर दस कदम आगे चलकर हम पीछे मुड़ते, हमप्ता चोटी को देखते, एक बार आसमान को और आगे चल पड़ते। मन अभी भी यही कह रहा था कि हमप्ता की तरफ मुड़ लो, पर हम दिमाग की सुनते हुए मनाली की तरफ चलते जाते. हम भाई जी की उसी बात को दोहरा रहे थे कि पहाड़ तो हमेशा यहीं रहेंगे, दोबारा आ जाना।
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय | पार्ट – 9
बालू का घेरा से मनाली — दूर है. आते वक़्त हमें यहां पहुँचने में डेढ़ दिन लगा था. वापसी में हमें बस उतरना था, कोई ख़ास चढ़ाई नहीं थी. हमने सोचा कि चार लोग हैं, साथ चलते चलते शाम तक तो वशिष्ठ, प्रणव भाई जी के अड्डे पर, पहुँच ही जाएंगे। सेथन पहुंचते ही नेटवर्क आ जाना था, इसलिए पहला टारगेट वहीँ पहुंचना था. वापसी की यह यात्रा इतनी आसान नहीं थी जितनी कि हम सोच रहे थे. इसमें भी अलग एडवेंचर हुआ. जो नाले टाप-टाप के हम यहां पहुंचे थे, वापसी के वक़्त वो नदियां बन बन चुके थे. दो दिन की लगातार बारिश ने उनमें पानी फुल्ल कर दिया था. हमारे अलावा तीन ग्रुप और थे वापिस आने वालों के, उनके साथ साथ अपन लोग भी रस्सियां बांधकर लटकते लटकते वापस आये. नाले पार कराने के बहुत पैसे लिए इंडिया हाइक वालों ने. वापिस आने की यात्रा बताना कोई सुखद एहसास नहीं है इसलिए हम यहीं रुकते हैं. बाकी इतना है कि रात ग्यारह बजे तक हम लोग मनाली, वशिष्ठ पहुँच गए थे.
15 अगस्त वाली ट्रिप – ट्रिपिंग इन टू द हिल्ज़ ऑफ़ इंडियन हिमालय |भाग – 10
ठीक उसी टाइम जब हम लोग हमप्ता ट्रेक के अधम में बैठे थे, हमारी आधी टीम मनाली से दिल्ली आने के लिए एक दिन पहले निकल चुके थे. वो लोग अभी तक घर नहीं पहुंचे थे. इसकी एक अलग कहानी बनती है और वो अगले हफ़्ते के थर्सडे थ्रोबैक में पढ़िएगा. बाकी हमारी यह ट्रिप बड़ी लंबी और मज़ेदार हुई. पहले मनाली, वशिष्ठ में ख़ूब चिल्ल किया, जोगणी फॉल देख लिया, हमप्ता ट्रेक पर भी हो आए, ट्रेक पर क्वारंटाइन भी हुए. यह सब कुछ होने में कई नए दोस्त बन गए और कितनी मेमोरीज समेट लाए. इससे ज्यादा आख़िर चाहिए ही क्या। तभी तो भाईलोग एक हफ्ते का ट्रेवल आपको इतना कुछ दिखा सकता है, सीखा सकता है, जितना आप इमेजिन भी नहीं कर सकते। बाहर निकलने की देर है बस. पर अभी कोरोना टाइम्स में आप भी बाहर न निकलकर हमप्ता ट्रेक की कहानी पढ़ लें, वही सबकी भलाई एंश्योर करेगा!
राम राम !