हिमाचल के सैंज वैली में एक गाँव है डग्गारा — शांघढ के ऊपर. एक घंटे की चढ़ाई है, थोड़ी खड़ी है जी. वहां रहते हैं एक सिंह साहब, मिलेंगे तो कहेंगे – I do what I do. 90 साल की उम्र है अभी. भारतीय थल सेना की पहली ट्रेनी भर्ती, IMA( Indian Military Academy -IMA, Dehradun) में 1949 में हुयी थी, संविधान लागू होने से पहले, देश आज़ाद होने के बाद. वीरपाल सिंह उस बैच में कैडेट थे, Cow Boy के नाम से जाने जाते थे, आज भी जाने जाते हैं, भारतीय थल सेना आज भी उनको चिट्ठियां Cow Boy के नाम से भेजती है.
सिंह साहब को आर्मी रास नहीं आयी, किताबों के, ज़िन्दगी के और आर्म्स के – जबरदस्त शौक़ीन; शौक़ीन क्या, जुनूनी. बंगाल में कुछ दिन नौकरी की, वो भी रास नहीं ही आनी थी सो न ही आयी. वहीँ शादी की — तारा सिंह से. जब्बरदस्त सुन्दर हैं, पूरी रॉयल विक्टोरियन लेडी. शादी कर के सिंह साहब आये दिल्ली, दिल्ली भी रास न आनी थी, न आयी. पहुंचे हिमाचल – ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क. घूमने गए थे, वहीँ रह लिए. आज भी वहीँ रहते हैं. पूरी बड़ी सी लाइब्रेरी है, ऑटोमोबाइल, लैंग्वेजेज, मेडिसिन, आर्म्स, Literature, और साइंसेज – किताबों का कोई ओर छोर ही नहीं है. Godfather के बगल में मिडनाइट चिल्ड्रन रक्खी हुयी है. मतलब, क्या सर !
खैर घर में बांकी और अनोखी चीजों में शामिल है 1910 के दशक की कटलरी, बीथोवन की Original Pastoral Symphonyऔर एक टाइगर की ममी – इसको असम से लाये थे सिंह साहब. घर में एक और टाइगर हैं — लीलावती काकी. सिंह साहब की दूसरी बीवी. यहीं की हैं, कद्दावर हैं, 70-80 डंगरे और कुछ बीसेक गायें संभालती हैं. खेत खलिहान भी हैं, वो भी यही देखती हैं. तारा सिंह जी- पहली बीवी और लीलावती काकी दोनों यहीं रहती हैं, साथ में. गजब का परिवार है. लीलावती काकी से सिंह साहब को एक लड़का है – जहान. कभी फॉर्मल स्कूलिंग कराई ही नहीं उनकी. बंदा ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपर्ट हैं, 5-6 भाषाएं जानता और बोलता है. आयुर्वेद और मेडिसिन की गजब की नॉलेज.
बत्ती काकी (लीलावती काकी) बहुत प्यारी हैं, गले लगाएं तो लगेगा की माँ का सारा प्यार उड़ेल दिया हो.
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