A goor is the messangers of

क्या जीसस और हिमालय के एंशिएंट ट्राइब्स रिलेटेड हैं?

“जॉन दी बैप्टिस्ट ने एक एंजल की मदद से जीसस को एक केप (चोगा) गिफ्ट दिया था। इस इंसिडेंट के बाद ही जीसस वो सब कर पाए जिससे वो “जीसस” बन पाए! बेसिकली, इस केप की वजह से ही जीसस को सुपर नैचुरल पावर्स मिलीं।” Zohar Stargate Ancient Discovery 

जीसस का बैप्टायजेशन

इस हिस्टोरिकल इवेंट के बारे में विलियम हेनरी ने अपनी किताब “The Secret Of Sion” में भी बहुत कुछ लिखा है। उनके हिसाब से जीसस की बॉडी कम्पलीट करने के लिए,  जॉन बैप्टिस्ट ने एक तरह की वाइब्रेशन और बहुत सारी अलग अलग इलेक्ट्रिकल वेव्स का इस्तेमाल किया था। अपने एक लेक्चर में तो हेनरी साहब बताते हैं कि क्रिश्चन कस्टम्स में भी आपको इस प्रोसेस की झलक देखने को मिल जाएगी।

लेकिन इन पावर्स के बावजूद जीसस क्रूसिफ़ाय कैसे हो गए? कहाँ थे वो पावर्स और जो कलाएं उन्हें जीसस बनाती थीं, उनका इस्तेमाल उन्होंने क्यों नहीं किया? बचपन में क्रिश्चिएनिटी की कहानियों में सबसे ज़्यादा सरप्राइज़िंग बात यही तो लगती थी कि आखिर जीसस मर कैसे सकते हैं और ऊपर से मर के वापस भी आ गए! समय बीतने के साथ, हिमालय की एक्ज़ॉटिक और रेयर कल्चर्स से इंटरैक्शन बढ़ने पर ऐसे ढेरों ‘अद्भुत’ एक्सपीरिएंसेज हुए जिसके सामने जीसस की यह री-इन्कार्नेशन वाली थ्योरी कुछ भी नहीं है। चलिए, आज इसी इंकार्नेशन और जीसस की आर्ट ऑफ़ प्रीचिंग को ध्यान में रखते हुए उनकी पर्सनालिटी के एक एस्पेक्ट को हिमालय के एन्सिएंट कल्चरल कॉन्टेक्स्ट में देखते हैं।

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सबसे पहले यहाँ सवाल ये है कि हिमालय में ऐसा कौन है जो मर कर फिर से ज़िंदा होता है?

बेशक, प्लेन्स में रहने वाले लोग इस ट्राइबल फेनोमेनन से वाकिफ़ नहीं होंगे, लेकिन हिमालय के लोग, पॉसिब्ली इंटीरियर हिमालय के लोग, ये अच्छी तरह से जानते हैं कि “ऐसा कौन है जो मरकर ज़िंदा होता है?” इसका जवाब है नड़ या जिसे इधर की आम बोलचाल की भाषा मे ‘नौड़’ कहा जाता है। हिमालय में नड़ रेस का ‘देव कारिंदा’ वो एकमात्र व्यक्ति है, जो आज भी मरकर फिर से ज़िंदा होता है। यह हिमालय की एक ट्राइबल यानी कबाइली ट्रेडिशन है। इस ट्रेडिशन को निभाने के लिए यहां एक स्पेशल इवेंट ऑर्गनाइज़ किया जाता है जिसे ‘काहिका’ कहते हैं। इसमें ‘नड़’ के ‘प्राण जाने के बाद’ लोकल देवता उसे फिर से ज़िंदा करते हैं।

नड़ या नौड़ कम्युनिटी है क्या और इनका क्या सिग्नीफिकेन्स है? अपर हिमालय के कॉन्टेक्स्ट में ज़्यादातर लोग सिर्फ़ शामन्स से परिचित होंगे। नड़ या नौड़, ज़्यादातर लोगों के लिए एक बिल्कुल नया नाम हो सकता है। आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, मंडी और शिमला ज़िला, और ऊपरी हिमालय के कुछ इलाकों में आप नौड़ कम्युनिट से मिल सकते हैं। यह कम्युनिटी ज़्यादा पॉपुलर तो नहीं है, लेकिन इनसे जुड़ा एक इवेंट बेहद चर्चित है।

मलाणा गाँव में गूर, फ़ोटो — कॉलिन रॉसर

हिमाचल के निरमण्ड और शिमला के गाँवों में मनाया जाने वाला ‘भूंडा फेस्टिवल’ में ट्रेडीशनली, देव परंपरा के हिसाब से चुने गए एक व्यक्ति को रस्से पर बांधकर खाई की ओर भेजा जाता है। आप इसे पुराने समय में किए जाने वाले नरमेघ यज्ञ का ट्राइबल अडॉप्टेशन भी मान सकते हैं। कुल्लू में मनाया जाने वाला काहिका देव उत्सव में बलि के लिए चुने गए व्यक्ति को ‘नौड़‘ कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि नड़/नौड़ कम्युनिटी एक ही खानदान के वंशज होते हैं, जिन्हें इस ट्रेडिशन को निभाने के लिए चुना जाता है। काहिका उत्सव के दौरान अगर मरने के बाद नड़/नौड़ देवताओं के पावर से जिंदा ना हो पाए, तो उस देवता की सारी संपत्ति उस नड़/नौड़ की पत्नी को दे दी जाती है।

बेशक आज यह प्रथा सिम्बॉलिक तौर पर निभाई जाती हो और इतने दिनों में इस प्रथा में कुछ बदलाव भी आए होंगे; लेकिन नड़ समुदाय का एक्सिस्टेंस उतना ही पुराना है जितना पुराना पहाड़ों में बसने वाले ट्राइब्स का है। ख़ास बात यह भी है कि नड़ या नौड़ कम्युनिटी का वह व्यक्ति है जो दुनिया के पाप ख़ुद पर लेकर अपनी जान देता है और देवताओं की ब्लेस्सिंग्स से फ़िर जिन्दा हो उठता है। अब यही तो बात जीसस के बारे में बताई गई और मानी भी जाती है — कि उन्होंने दुनिया भर का पाप खुद पर लेकर अपनी जान दी और फ़िर लगभग मिलते जुलते तरीके से ही जिन्दा भी हो गए! तो क्या, हम इस बेसिस पर यह मानें कि जीसस भी एक तरह के नड़ थे?

Baba Chetram Kaith is the host of Bawray Banjaray Home in Baga Sarahan
बाबा चेतराम कैथ निरमण्ड तहसील के बागा सराहन में देवता के ‘गूर’ हैं!

जीसस के बारे में आमतौर पर यह सबको पता है कि वो गॉड के मेस्सेंजर थे। वैसे भी जीसस की लाइफ अगर देखें, तो वे जीवन भर गॉड के मेस्सेंजर ही बने रहे। जॉन बैप्टिस्ट का जीसस को एक चोगा के ज़रिए कलाएं और पावर्स देने के बारे में एक ओपिनियन यह हो सकता है कि ये प्रोसेस जीसस को शामन/ओरेकल/गूर विद्या का ज्ञान देना है।

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अब  दूसरा सवाल:  दुनिया भर के एन्सिएंट ट्राइबल कल्ट्स के लोगों के लिए गॉड का मैसेज कौन लाता है?

इसका जवाब है – गूर, जिसे लोग ओरेकल या शामन्स के रूप में जानते हैं। यह बात भी लगभग उतनी ही पुरानी है जितनी पुरानी नड़ कम्युनिटी है। यहां एक सवाल यह भी उठता है कि क्या जीसस नड़ थे या गॉड्स के ओरेकल/गूर थे? वैसे, ऐसा बहुत कम देखने मे आता है कि कोई गूर या शामन इस प्रकार से पूजा गया हो, जैसे जीसस पूजे गए। हां, बेशक कुछ गूर पूजे गए हैं, लेकिन कुछ सर्टेन सरकमस्टान्सेज़ में ही और वो भी बहुत सारे लिमिटेशंस के साथ। एक थर्ड पर्सन पर्सपेक्टिव ये भी है कि जीसस का नड़ या ओरेकल होना, दो एन्सिएंट रेस की क्रॉस ब्रीडिंग हो सकती है।

ख़ैर, नड़ और गूर कम्युनिटी के साथ साथ जीसस का इनमें से एक होना या ना होना फिलहाल एक्सटेंसिव रिसर्च की बात है। लेकिन, हिमालय की अनेकों फोक ट्रेडिशंस की बेसिस पर देखें, तो यहां आज भी लोकल शामन प्रणाली इसी ओर इशारा करती है कि जो देवताओं का संदेश लाता है, वह गूर/शामन होता है। साथ ही, यहां की नड़ जाति और देवताओं से जुड़ी ट्रेडिशनल कस्टम्स को देखें तो प्रायश्चित के लिए इस कम्युनिटी के लोग आज भी पहले की तरह ही अपने प्राणों की बलि देकर पूरी दुनिया के पाप अपने ऊपर लेते हैं और दूसरों के लिए अपनी जान देकर देवता के आशीर्वाद से फ़िर जिन्दा होने की प्रथा को बनाए हुए हैं।

Temple in Teerthan
हिमाचल के मंदिर

इंटर कल्चरल कम्पेरिज़न्स में इस तरह की मिलती जुलती बातें सामने आना कोई नई बात नहीं है। एक जिज्ञासु होने के नाते वैसे भी हम सबके मन मे ऐसे बहुत से सवाल उठते रहते हैं। यह भी अभी एक नया विचार है, एक ऐसा विचार, जिससे रैडिकल सोच वाले लोगों को असहमति भी हो सकती है। लेकिन, यह हिमालय और अन्य संस्कृतियों के डिफरेंट आस्पेक्ट्स की स्टडीज़ को एक अलग डायरेक्शन दे सकता है। नड़ और गूर कम्युनिटी के बारे मे ऐसी कई बातें हैं जिनपर अगर ग़ौर किया जाए, तो हमें अपनी हिस्ट्री और कल्चर से जुड़े बहुत से सवालों के जवाब मिल सकते हैं। बस हमें यह ध्यान रखना होगा कि हिमालय की इन ट्रेडिशंस को रेस्पेक्टफुली प्रिज़र्व किया जाए। 

हिमालय और हिमालय की अबूझ संस्कृति के बारे में कृष्णनाथ जी की कुछ लाइन्स याद आती हैं ―

“हिमालय को कौन पूरा जान सकता है? केवल हिमालय ही हिमालय को जानता है । या शायद … वह भी नहीं जानता ! आँख ; आँख को कहाँ देख सकती है?”

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