Bawray Banjaray in Ladakh

बाल काण्ड – ये कहानी है एक क़िस्से की

चैप्टर 1

ऐसे ही, अपनी  पहचान और कहानी खोजने की दौड़ चल रही थी — 9 से 6 का ऑफिस, हफ़्ते का वीकेंड और जीने के लिए 2 आखिरी दिनों का आसरा।  ऐसा कोई है ही नहीं जिसके लिए ये 2 दिन कभी काफी हों. वैसे ये कोई कहने की बात नहीं हैं. बाबा पंकज कहते हैं कि ये कर्मयोग है – जो जैसा, जैसे मिले, एक्सेप्ट कर लेना चाहिए। बाबा के ड्रेड लॉक्स हैं, एचआर ने पूछ लिया – “व्हाई डोन्ट यू कट योर हेयर?”

बाबा: “व्हाई डू यू कट योर हेयर?”

बात भी सही है – जो जैसे मिला है, उसको वैसे ही रहने देने में क्या दिक्कत है ? कस्टमाइज़ेशन की दौड़ ही कह लीजिए। ये कोई नई प्रक्रिया नहीं है. और अगर कोई बाल काट के किसी और के हिसाब से ख़ुद को गुड  लुकिंग मान सकता है तो कोई बाल बड़े रख कर एक बेहद ख़ूबसूरत इंसान हो सकता है. 

बाबा और हमारे जैसे लोगों को हमारे समाज़ में एक अलग नज़र से देखा जाता है. जैसे हम पंकज को बाबा ही कहते हैं. आप किसी को बाबा किस वजह से कहना शुरू करते हैं, ये सोचने लायक बात है. पंकज, बाबा होते हुए भी 9 से 6 वाला चक्कर लगाते हैं. यही कर्मयोग है. और योग अनुशासन है, एक बैलेंस का. सबके अपने अपने बैलेंस का. 

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तो हम भी यही बैलेंस ढूंढने में पिछले कई सालों से लगे हुए है. जतन सारे किए. आस्तिक से नास्तिक होने का सफ़र, नास्तिक होते होते भी कभी मन के कोने में किसी भगवान का भरोसा ढूंढने का सफर – सब कर आए. उम्र बढ़ती रही – बाल छोटे बड़े होते गए. घर बदलते गए, समाज बदलता गया, हम सब के हिसाब से सेट होते गए. नौकरी की, छोड़ी , फिर पकड़ी, फिर छोड़ी, फिर करनी पड़ी, इस बार छोड़ ही दिया। फिर महीनों तक खाने पीने के लाले पड़े रहे और इस तरह से एक बार फ़िर नौकरी का शिकार होना पड़ा. बात वही थी – कि बैलेंस मिल जाए! यही तो होता है – थोड़ा ऊपर नीचे करना ही तो बैलेंस करना होता है. कि उनकी बात थोड़ा हम मान लें और थोड़ा वो हमारी सुन लें. 

Bawray Banjaray in North East
तय किया गया कि जड़ता को ख़त्म किया जाए

जैसे-जैसे एज फील्ड में टाइप किए गए नंबर का मान बढ़ता है, वैसे वैसे आपके जीवन में अजीब अजीब किस्म के सवाल आएँगे। आपको आपके बैलेंस से बहुत दूर ले जाने के लिए. कहीं नज़र ही नहीं आएगा . तो हमने सोचा अब तरीका बदला जाए. सेट हो के तो देख लिया। अब सेट नहीं होंगे। हमारे पास इसकी पूरी वजह थी.

घूमा जाए, खोजा जाए बैलेंस

बहुत सिंपल – जो जड़ हो रहा है वो सड़ रहा है. और जो सड़ रहा है वो तो इस बैलेंस को ढूंढने की बात भी नहीं कर सकता। उतना ही सिंपल जितना एक जगह पर एक घर के एक कमरे में अपनी पूरी ज़िन्दगी बिता देना है. यही तो सेट होने की सबसे बेसिक परिभाषा हो सकती है – सेट शब्द, सेट्ल से आया है. सेटल्ड एट, सेटल्ड फ़ॉर , विद – सेट होना इन्हीं सब प्रीपोज़िशन्स का उदाहरण बन कर रह गया था. 

सो तय किया गया की इसकी जड़ता को ख़त्म किया जाए. घूमा जाए. कहीं भी. कभी भी. किसी भी हालत में, सेट होकर नहीं रहना है किसी एक जगह. 

“You will find 99 reasons to not do a thing but then, there would be one – just one, enough to make you do what you have been holding.”

ये ज्ञान हमें 11वीं-12वीं के बच्चों को उनके हिसाब का ज्ञान देते-देते आया। एक ही वजह काफी होती है, किसी काम को करने के लिए। हमारे लिए तो कम से कम 30-70 का तो रेशिओ था। 30 वजहें खुद को कन्विंस करने के लिए बेहद काफ़ी हैं। ट्रेवल ब्लॉगर की नौकरी, लिखने का मौका, घूमने का सौदा, कूल बनने का दिखावा और सही में – सीखने के अनगिनत चांसेज।

15 अगस्त वाली ट्रिप – जब मोटा भाई के प्लान ने हमारे प्लान की ले ली

तो पिरोगराम सेट किया गया। अपन घूमेंगे। बिना घूमे भी घूमेंगे। आपके कमरे की खिड़की भी आपको घुमाएगी। प्रचार और विज्ञापनों से भरे अख़बार भी आपको घुमाएंगे। तमाम किताबें, खाली सफे – आप चाहें तो ये सब आपको किसी एक चीज़, किसी एक जगह पर सेट होने से बचा साकती हैं।

Bawray Banjaray at Triund Trek
त्रिउंड बहुत काम की जगह है!

25-30 साल की उम्र बीतने के बाद पता चला कि दरअसल पढ़ने लिखने से ज़्यादा आसान काम तो कोई है ही नहीं। फोकट में पूरा बचपन बेकार चला गया – कोई दूसरा ऑप्शन ढूंढने में। तो जो सबसे आसान था, वो चुन लिया गया।

जुलाई का महीना था। साल 2015। त्रिउंड से हम वापस आए थे। जनकपुरी, दिल्ली में नए ताज़े दिल्ली हाट का उद्घाटन हुआ था और हम बैठे थे फ़ूड कोर्ट में। भसड़ वही चल रही थी कि आखिर किया क्या जाए – “आई वांट टू कीप इट ऐज़ रैंडम ऐज़ पॉसिबल। मतलब हम ‘कुछ भी’ लिख सकें। कुछ भी कर सकें उस प्लैटफ़ॉर्म पर।”

“बावरे बंजारे”? हाऊ इज़ द नेम?”

Bawray Banjaray Team in Sainj Valley
बावरे बन जा रे!

ज़िन्दगी में आपको दो तीन बार ही प्यार होता है। भले ही वो एक ही इंसान या चीज़ से हो। हमारी ज़िंदगी के उन दो तीन में से एक पल था ये।

“आई लव यू। “ — और इस तरह से हुई एक शुरुआत।

चैप्टर 2 पढ़िए

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