तरुण गोयल साहब की ‘सबसे ऊंचा पहाड़’ और माउंट त्रिउंड की चढ़ाई के अलावा धर्मशाला से हमारी कुछ ख़ास जान पहचान तो अब तक नहीं हुई थी! मेन सिटी से 15 मिनट की दूरी पर धौलाधार की छांव में तीन चार दिन चिल करने का आईडिया था! ऊपर से खबर ये थी कि कैंप लगाने की जगह एक आइलैंड पर किसी पहाड़ी नदी किनारे है! गाँव का नाम है पद्दर और ये अड्डा है चन्दन भाई का! तो सीन सेट हुआ – 5 लौंडे, एक Duke, एक 350 क्लासिक, और एक अपनी एवेंजर 220! खर्चे का हिसाब लगाया गया, तीनों बाइक्स कितना देती हैं, इसका सबसे लोवेस्ट पॉसिबल एवरेज़ निकाला गया! सारे मसाले, टेंट, अपना चोमरू और कपड़े – किट के साथ सब कस लिया गया!
टैंक्स फुल करवाए हमने विकासपुरी में और फिर आया दिल्ली छोड़ते ही कस्टमरी डिनर का टाइम! 5 6 वैष्णों ढाबे स्किप करने के बाद, एक ऐसा ढाबा मिला जिसपे कुछ ख़ास वेजीटेरियन टाइप सीन लग नहीं रहा था! ढाबे पर बैठे भाई से हमने चाय को बोलै और टेबल पर सज गयी बिरयानी! सनराइज़ का क्या है कि यह कभी भी हो जाता है। नहीं, डेली वाला सनराइज नहीं। हम इस वाले सनराइज की बात कर रहे हैं, जो बस जेहन में बस जाता है — कभी यूँ ही किसी रस्ते, रात से सुबह की ट्रिप पर जो आँखों को बस दिख जाता है – सनसनीखेज खुलासे जैसा।
बाइक से ऐसे ट्रैवल करना फुल ऑन थ्रिलिंग एक्सपीरियंस है! दो पहियों पर सवार होकर बदलते नज़ारों के साथ चलते रहना, रोम रोम को एडवेंचर का एहसास कराता है, और सफ़र अगर पहाड़ों का हो तो फिर थ्रिल की सीमा ही क्या! दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने के लिए अपन लोग अभी तक पंजाब टाप चुके थे. खुले मैदानों से पहाड़ी होते नज़ारों के साथ हमारे कूल्हे सुन्न पड़ने लगे. पर हमारी बाइक्स हमारे नाम की चढ़ाई करने के लिए फुल रेडी थीं. चन्दन भाई ने अपने दादू का फोन नंबर दिया था! कुछ 30 – 35 किलोमीटर पहले हमने फ़ोन लगाया! दादू ने कहा मंदिर के अगले चौक पर हमारा नाम ले लेना, लोग ले आऐंगे तुम्हें! चन्दन का भेजा गया गूगल लोकेशन कब का फ़ेल हो चुका था!
घर पहुँचे, हमारा आतिथ्य हुआ – काँगड़ा हॉस्पिटैलिटी के मॉडर्न रेन्डीशन से! दादू की झुर्रियों में काँगड़ा की कहानियों के ज़खीरे से भी! और फ़िर बात आई रात के रुकने की! पागल हो क्या, क्या करोगे वहाँ? इतनी ठंढ है और ऊपर से भालू – वालू आते रहते हैं! घर है, घर में रहो! हर ट्रिप की तरह, यहाँ भी कुछ पौने घण्टों की मिन्नत लगी – हम क्या करते हैं, क्यों करते हैं, ये समझा कर उनको मनाने में!
जानिए कैम्पिंग इन हर्सिल – एक बेहतरीन कैंपिंग स्पॉट के जुगाड़ की कहानी!
जैसी उम्मीद थी दादी मान गईं! जब दादी मान गईं तो दादू तो देर सवेर मान ही जाएंगे! दादी ने ज़िम्मा लिया – वो जगह दिखाने की जहाँ हमनें टेंट लगाना था! तीन लोग निकल लिए टेंट टिकाने। 5 बज गए थे, मार्केट से राशन का सामन भी लेना था – सो 2 लोग निकल लिए बाज़ार देखने!
एक बढ़िया कैंपिंग स्पॉट के लिए आपको थोड़ी सी समतल जमीन चाहिए. टेंट के आसपास पानी का एक सोर्स हो और खाना बनाने के लिए लकड़ी लायक जंगल मिल जाए तो बस वहीं अपना बस्ता पटको और टेंट टिका लो! आपने हमारा हर्षिल वाला अड्डा तो देखा ही है! कुछ आधे घंटे में दादी हमें बिलकुल वैसी ही जगह पर ले आयीं। सनसेट से पहले हमने अपने टेंट गाड़ दिए और आसपास से सूखी लकड़ियां इक्कठी करके राशन लाने गए बन्दों की वेट करने लगे!
जब बात आती है कैंपिंग करते हुए खाना बनाने और खाने की, तो इसमें हमको कोई कोम्प्रोमाईज़ पसंद नहीं। इसलिए, हम घर से ही सारे ज़रूरी मसाले पैक करके चलते हैं और साथ में होता है हमारा कुकिंग पॉट, जिसको हम चोमड़ू बोलते हैं. चोमड़ू की ट्रेवल स्टोरी भी अनोखी है. इसे हम अपने साथ लेकर चलते हैं, और इस चोमड़ू ने हमें न जाने कहाँ कहाँ खाना खिलाया है. चोमड़ू की कहानी कभी अलग से विस्तार में बताएंगे।
धर्मशाला में हम सबने मिलके डिसाईड किया कि कुछ स्पेशल बनाया जाए. स्पेशलिटीज़ में बावरे बंजारे राड़ा चिकन, बावरे बंजारे कैंपिंग स्पेशल अंडा करी और चोमड़ू स्पेशल लैंब करी. साथ ही अगले दिन ब्रेकफ़ास्ट के लिए अपने पास ब्रेड अंडा, मैगी और सॉसेजज़ और रखे थे. कैंपिंग पर खाना हमारा सॉर्टेड रहता है.
अब आप पूछोगे कि सारा टाइम तो खाना बनाने और खाने में ही निकल गया होगा! फ़िर ट्रिप का फ़ायदा ही क्या हुआ? अब फ़ायदे नुकसान का तो पता नहीं, पर सीन अगर कुछ ऐसा हो तो आप क्या कहेंगे? जी हाँ! लाइव बक्चोदियाँ, अपना पर्सनल स्विमिंग पूल और साथ में धौलाधार का आसरा!
असंख्य बांसों के छाए में पली बढ़ीं कढ़ी पत्तों की खुशबू में धर्मशाला की अलग पहचान लेकर हम इस ट्रिप से वापस लौटे – एक और नई ट्रिप प्लान करने के लिए! आपको हमारी ये वाली ट्रिप कैसी लगी, हमें कमैंट्स सेक्शन में ज़रूर बताईयेगा! अपना और अपनों का ध्यान रखें, स्वस्थ रहे, खुश रहे! हम मिलते हैं आपसे बावरे बंजारों की अगली वीडियो में!
2 thoughts on “आइलैंड हंटिंग इन धर्मशाला| BAWRAY BANJARAY ट्रैवलॉग्स | पद्दर गांव”
कुछ ना कुछ लगा रहता है ज़िंदगानी मै
पर स्वाद आ गया जंगल की कहानी मै
तुम्हारा वो चोमरु मै खाना पकाना
वो बहते पानी मै ख़ुद डूब जाना
वो बंजारे स्पेशल चिकन राड़ा
ओर स्टोरी टेल की तरह कहानी सुनाना
मस्त है विडीओ मानना पड़ेगा यारा👌😊
बहुत शुक्रिया सुमित जी! 🙂