Root Bridge of Meghalaya

Trek To The Double Decker Living Root Bridges Of Meghalaya – 6000 सीढ़ियों वाली ट्रेक

वंडरलस्टर्स की बकेट लिस्ट्स में मेघालय अचानक से फेमस हो गया! बस पिछले तीन साल का टूरिस्ट काउंट और मेघालय के ऊपर बनाया गया कॉन्टेंट काउंट ही कम्पेयर किया जाए तो आपको इसका पता चल जाता है कि नार्थ ईस्ट इंडिया is a the new cool! इस ट्रेंड को सेट करने वाली दो चीज़ें हैं — एक तो वो ट्रांसपेरेंट नदी (उमगोट नदी – डॉकि और श्नोपडेन्ग) और दूसरा है Double Decker Root Bridge Of Meghalaya.

The root bridge of Meghalaya
Root Bridge of Meghalaya

पिछले साल दिसम्बर में Bawray Banjaray In North East एक्सपेडिशन पर ये सेकंड लास्ट डे था. पिछली रात सोहरा में कैंपिंग के बाद आज सुबह Nohkhalikai Waterfall पर बीती. वॉटरफॉल के मुहाने तक पहुँचने के लिए आपको बहुत ही आसान ट्रेक, और बेहद अड्वेंचरस रॉक क्लाइम्बिंग की परीक्षा देनी पड़ती है. मुहाने तक पहुँचने, फिर लगभग 10 फ़ीट गहरे गड्ढे में शाहनवाज़ भाई का फोन गिराने, फिर अंदर बहते पानी वाले कुछ 3 फुट डायमीटर के इस गड्ढे में डुबकी लगाकर 50 हज़ार का वाटरप्रूफ़ फ़ोन ढूंढने का जानलेवा जोख़िम उठाने, फोन न मिलने पर उसका लॉस सेलिब्रेट करते करते शाहनवाज़ भाई के कपडे पहनने लायक सुखाने में हमें 11 बज चुके थे. हम पहुंचे कब थे? सुबह 6 बजे. टिकट देने वाले भाई लोग 9 बजे आते हैं.

वापस आकर टिकट कटाकर, कैश न होने पर बाइक से जाकर कैश लाने और यहाँ से निकलने में 12 बज गए. जाना था दी फेमस Double Decker Root Bridge. डेढ़ बजे जब हम Tyrna Village पहुंचे तो ये बिलकुल भी नहीं पता था कि आगे क्या है, कैसे जाना है. बस ये रूट ब्रिज देखने जाना था. किसी रेनबो फॉल का भी कोई आईडिया नहीं था. हमने कि वापस आकर खाना पीना कर लेंगे. 10 मिनट तक ये डिसाइड करने के बाद कि रूपेश किट बैग लेकर जाएगा या किट बैग नहीं जाएगा, हम 4 लोग चल दिए. पता चला की आगे जाकर रास्ता नीचे की और उतरता है, 4 किलोमीटर है. हमने सोचा सही है, 8 किलोमीटर ही तो है, ज़्यादा से ज़्यादा तीन घण्टे में वापस आ जाएंगे. उसके बाद सब साथ ही खाएंगे.

The metal suspension bridge entoute the double decker root bridge in meghalay
देखने आए थे रुट ब्रिज, मिल गया लोहे का झूलने वाला पुल

उतरना शुरू किया, सीढ़ियां आईं, उतारते रहे, उतरटे गए और जा पहुंचे इस पतले झूलते पुल पर. अब फ़्रस्ट्रेशन होने लगी. एक तो जब से चले हैं तब से चलते ही आ रहे हैं,  जंगल न तो घना हो रहा है न ही कम हो रहा है. थोड़ी थोड़ी दूर पर गाँव आए जा रहे हैं. पूछते पाछते लगभग 1 घंटे बाद हम पहुंचे सिंगल वाले रुट ब्रिज पर. यहाँ पाई जाने वाली रबर ट्री के जड़ों को आपस में मिलाकर ये पुल बनाए जाते हैं. संकड़ा है, बाइक तक निकल जाती हैं.

The root bridge is one of the most popular places to visit in Meghalaya

अब सीन ये था कि 3 बज चुके हैं, और नॉर्थ ईस्ट की सुबह शामों का हिसाब किताब के क्या ही कहने। दिसंबर में 4 बजे के बाद से जंगल तो एकदम ही अँधेरा होने लगता है. फिर भी तय किया गया कि दो बिल्डिंग वाला पुल तो देख कर ही जाएंगे.यहां सिंगल माले वाले ब्रिज पर हमें एक गाइड मिला, कहता है अभी बहुत दूर है, और उससे भी आगे है रेनबो फॉल. तब जा के पता चला कि आगे वॉटरफॉल भी है कोई.

The stairs that never end on the double decker root bridge in meghalaya

सो फिर से चलना शुरू किया गया. जगह जगह पर बाथरूम की व्यवस्था, साफ़ सुथरा रास्ता और जंगल की खुशबू – अब थोड़ा मज़ा आने लगा था. बीच में सीढ़ियां जो गायब थीं! ट्रेल दे दो, खड़ी चढ़ाई दे दो – अपने को चलेगा। सीढ़ियों की यूनीफॉर्मिटी बहुत केओटिक होती है. बोरिंग और मोनोटोनस. चढ़ाई और उतराई, दोनों. खैर आगे फिर सीढ़यां आईं, लम्बी देर तक साथ चलीं. कुछ 3000 सीढ़ियां और लगभग 1 किलोमीटर चलकर हम पहुंचे इलाका नागरियोट विलेज. यहीं है दी फेमस डबल डेकर रुट ब्रिज.

Deouble Decker Root Bridge of Meghalaya

ब्रिज तो जो अजूबा है सो तो है ही, लेकिंग ब्रिज के आसपास का जो महुअल है वो एकदम दुनिया से परे है. आप एंट्री करोगे तो आपके बाईं ओर कुछ दुकाने हैं, ऑरेंज जूस यहाँ से पी लो. एनर्जी आएगी। फिर आगे बढ़ के दाईं ओर हैं double decker root bridge. आप पुल पर चढ़ो, बीच में आओ और आपके बाईं ओर एक छोटा सा तालाब है. बारिश के दिनों में ये उफनती नदी का रूप ले लेता है. पर दिसंबर में एकदम शांत तालाब, जिसमें अनगिनत मछलियां तैर रही हैं, किनारे गाँव पर की औरतें सब्ज़ियां धो रही हैं, इक्का दुक्का टूरिस्ट नीचे उतर कर फोटो खिंचवा रहे हैं. तालाब किनारे मुर्गे और बत्तख घूम रहे हैं और ऊपर से जंगल में छान कर आने वाली धूप है जो अब बहुत फीकी हो गई है. साढ़े चार बज चुके हैं.

याद आया की कुछ कहाया नहीं है दोपहर से. सामने दूकान में अनानास दिखे. आसाम नागालैंड में आकर आपने अगर रसीले अनानास नहीं खाया तो आपका जीवन व्यर्थ है. अनानास पेलने के बाद अब दुर्दांत चढ़ाई की बारी थी. सीढ़ियों वाली। फिर से 3000. और अब हर बीतते मिनट के साथ अँधेरा बढ़ने वाला था. इधर जंगल में कोई नेटवर्क काम नहीं करता है, सिवाय बीएसएनएल के. सो चढ़ाई शुरू की गई. लगातार वाली. डेढ़ घंटे में वापस Tyrna Village पहुंचे और गाडी में बैठे लोग हमें भूखे कुत्तों की तरह घूर रहे थे. अँधेरा पूरी तरह से हो गया था. हमें शिलांग जाना था. रास्ते में खाना खाते हुए.