Cannabis Fields in India

डिकोडिंग चार सौ बीसी – व्हाट इज़ दिस ‘फ़ोर ट्वेंटी’ थिंग आफ्टर ऑल!

आज भी हर साल की तरह अप्रैल की बीसवीं तारीख है और दुनिया भर की चरसी-गंजेरी-भंगेड़ी जमात अपने अपने सोशल मीडिया पर इसकी ईद मनाते दिख रहे हैं. अब क्योंकि हमने भी दुनिया में कहीं भी, कभी भी प्रकृति की इस देन को संस्कृति का कानूनी हिस्सा बनाने की क्रांति करने में लगे बन्दे की सरकार बनाने में अपना दो कौड़ी का योगदान करने की पब्लिक घोषणा कर दी है, तो ये आइडिया आया कि एक बार चार इस चार सौ बीसी के बारे में  भी बातचीत करते चलें!

इस वाले चार सौ बीसी को समझने की सबसे पहली शर्त ये है कि आप डेट लिखने का अपना फ़ॉर्मैट ‘mm-dd’ कर लें – यानि महीने की संख्या पहले और डेट की संख्या बाद में बिना साल के! इसके बाद आप अप्रैल महीने की बीसवीं तारीख को देखेंगे, तो कुछ ऐसा दिखेगा –  04-20! अब बकैती बकचोदी कर के बोलचाल की भाषा में ये बन गया 0420 – फ़ोर ट्वेंटी! इसी तरह घडी की सुईयों का भी हिसाब क़िताब लगाकर दिन में दो बार फ़ोर ट्वेंटी हो जाता है!

ये तो हुई बात कि 420 का लॉजिक क्या है! अब देखते हैं की ये सारी बकचोदी है क्या! अर्बन नक्सल्स की तरह इर्रेलेवेंट अर्बन डिक्शनरी की मानें, तो इसका मतलब है, “बूम शंकर”. पर ये बात बस इतनी सी नहीं है! दुनिया भर में इसको लेकर कई बक्चोदियाँ शुमार हैं जिनमें अपने पुराने वाले हिट्लर (हेल फ़्यूहरर वाले) का बर्थडे, यूएस में पुलिस का गंजेड़ियों को पकड़ने का वायरलेस कोड और बॉब डायलन का गाना “Rainy Day Women #12 & 35” में 12x 35=420 वाली बकैतियाँ शामिल हैं.

हालाँकि टाइम मैगज़ीन इन सब बकैतियों को सिरे से ख़ारिज करते हुए असली कहानी बताता है – जो आप ढेरों अनेक प्लेटफॉर्म्स पर पढ़ सकते हैं. बात बस इतनी सी है कि कॉलेज के कुछ लौंडे शाम के चार बीस बजे अपने अड्डे पर फूंकने आते थे, रूटीन से – रील्जियस्ली! एकदम नमाज़ माफ़िक़! अब ये कॉलेज है कैलिफ़ोर्निया का सैन रफ़ेल हाई स्कूल। ये बन्दे अपनी एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटीज़ वाले टाइम में कैंपस के लुई पॉस्चर वाले स्टैच्यू के नीचे बैठ कर मस्त फूंकते थे. स्टीव कैपर, डेव रेडिक्स, जेफ्री नोएल, लैरी श्वार्टज़, और मर ग्रेविच नाम के ये बन्दे रोज़ बूम करने से पहले ‘बम भोले’ का जयकारा लगाने की जगह ‘फोर ट्वेंटी’ बोलकर दम लगाते थे!

बाद में, रेडिक्स ने ग्रेटफ़ुल डेड बैंड के बासिस्ट फ़िल लेश के साथ थोड़ा बजाया और दिसंबर 1990 की बीस तारीख को कुछ डेडहेड्स के एक ग्रुप ने पर्चे बंटवा दिए – “ओकलैंड में बीस अप्रैल 1991 को सब मिलकर माल फूकेंगे!” अब ये परचा हाथ लग गया स्टीव ब्लूम के – स्टीव हाई टाइम्स मैगज़ीन के रिपोर्टर थे और उन्ने दी ख़बर छाप! बस, फ़ोर ट्वेंटी बन गया 420 और कुछेक साल बाद मैगज़ीन ने इसका क्रेडिट उन्हीं लौंडे को दे दिया। 

ये तो बात हो गयी फ़ॉर ट्वेंटी की! अब बात कर लेते हैं अपने काम की! वीड, हशीश, मेरिउआना, या फ़िर अपना देसी गांजा, चरस और भांग — चाहे कुछ भी नाम दे दो, सब कुछ एक ही पेड़ की उपज हैं। यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि यह सब के सब पेड़ की पैदावार हैं और इन्हें आप हज़ार तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं! इन हज़ार तरह के इस्तेमाल में से जैसे भी यह इंसानी शरीर में जाता है, उसके लिए इसको किसी और मानव निर्मित चीज़ की जरूरत नहीं है. फ़िर भी, ये गांजा, वीड, भांग और चरस आखिर गैर कानूनी क्यों हैं? वो भी तब जब कि अथर्ववेद और चरक संहिता में इसके इस्तेमाल से होने वाले फायदों को अच्छे से समझाया गया है। हम यहां अथर्ववेद और चरक संहिता का रेफरेंस सिर्फ़ हमारी सरकार की वजह से ले रहे हैं! अब देख कर तो यही लगता है कि ये वाली सरकार भी हमारी संस्कृति को बचाने पर तुली हुई है, पर न जाने क्यों हमारी इस भरोसेमंद सरकार का ध्यान वेदों की इस बात की और नहीं जाता!

हमें तो लगता है कि वेद पढ़ते वक्त जब गांजे वाला चैप्टर आया था, तो इन्होने या तो वो क्लास बंक कर दी थी या फिर बिना पढ़े ही वो पन्ने पलट दिए, बिल्कुल रिप्रोडक्टिव सिस्टम वाले चैप्टर की तरह। अब अगर अपनी सरकार के रेफरेंस में आपको अपनी संस्कृति का मतलब समझना है, तो फिर आपको सच में वेदों के इस ज्ञान की सख़्त जरूरत है।

भले ही जाने अनजाने उनसे अथर्ववेद और चरक संहिता के कुछ अध्याय छूट गए हों, पर हमें फिर भी अपनी सरकार पर पूरा भरोसा है कि वो हम जैसों के लिए कुछ ठोस कदम ज़रूर उठाएगी और जैसे जम्मू कश्मीर के हमारे भाईयों की आज़ादी के लिए रातों रात संविधान से धारा 370 हटा, जम्मू कश्मीर को सीधा अपने शासन में ले लिया था, उस जैसा ही कोई कदम वो हमारे लिए भी उठाएगी। इसी चीज़ ने हमें यह मानने की ताकत और भरोसा दिलाया है कि यह सरकार हमारे साथ भी न्याय करेगी, फिर चाहे उसके लिए अब्दुल्ला, मुफ़्ती के साथ-साथ किसी गांधी को भी 8 महीने की जगह 8 साल तक नज़र बंद क्यों न करना पड़े।

वैसे, हम समझते हैं कि हमारी इस सरकार के पास अमरीकी राष्ट्रपति के भव्य स्वागत में कुछ नई दीवारें खड़ी करने जैसे और भी बेहद जरूरी काम भी हैं और हमारी इस तकलीफ़ पर इतना फटाफट कुछ न कर पाने की हज़ार वजहें भी। इतनी व्यस्तता के चलते अगर हमारा यह काम थोड़ा सा अटक भी गया, तो कोई बात नहीं   – क्योंकि हम जानते हैं कि थोड़ा टाइम लगता है! पर जैसे राम भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए जिस तरह पहले मस्जिद गिराई गई और फिर हमारी उम्र के बराबर की कानूनी लड़ाई लड़के राम लल्ला को उनका मंदिर दिलवा दिया गया, उसी तरह हम उम्मीद करते हैं कि अपन जैसे परम शिव भक्तों के दिल की भावनाओं, आशाओं और मनोकामनाओं का ख़्याल रखते हुए सरकार गांजे को फ़िर से आज़ाद कर देगी।

हम यह वादा करते हैं कि जब गांजे को धनिये की तरह उगाने की आज़ादी दी जाएगी, तब शाहीन बाग और केजरीवाल की भेजी गई चिकन बिरयानी पर हम ख़ुद व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी में घंटों इस बात पर लेक्चर देंगे और रिसर्च पेपर छपवाएँगे। बिल्कुल उसी तरह, जैसे थालियों के साउंड और दिए की लाइट वेव से कोरोना को मारने के तरीकों की व्याख्या हुई थी।

बम भोले!

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