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TRAVEL एक विधान है!
We started the trek with an aim of finishing it within 3 days from Aru valley and there was no better feeling than finishing it within the target time. A trek that is otherwise sold commercially as a 7-day trek, could be so well explored within 3 days. We will be sharing the detailed travelogue in some time. Do let us know of your queries and questions if you are planning to go for the Tarsar Marsar Lake Trek.
हीरा लाल भाई जी की अनुमति से हमने उनकी ओलम्पिक ट्रेनिंग कैंपेन के लिए क्राउड फंडिंग करवाने ज़िम्मेदारी ली है. क्योंकि समय बेहद कम है, इसलिए हिरा भाई की ये छोटी वीडियो स्टोरी बनाई गई और तमाम क्राउड फंडिंग साइट्स को नॉक किया गया है. कुछेक पर तो फण्ड रेज़र लाइव भी हो गया है.
हाँ तो वंडरलस्टों और फ़्री सोल लोग, आपने सुना ही होगा और पौने दो सौ बार “माउंटेंस आर कॉलिंग” का मन्त्र जाप किया होगा। मेरे को कभी ऐसे वाली फ़ीलिंग नहीं आई। हाँ, इत्तेफ़ाकन ख़ुद को पहाड़ों में पाया जब भी जीवन यात्रा ने मज़ेदार खूँख़ार रुख़ लिया, कभी जाने कभी अनजाने। पहाड़ों से अपना जन्मों पुराना रिश्ता है, इसलिए कभी बौराए नहीं वहाँ जा कर, बस एहसास होता कि घर आ गए। पर इस बार मामला कुछ अलग था, और सीन शानदार रहा, जिसके क़िस्से अब आपको सुनने को मिलेंगे। तो शुरू करें ?
“अब यार, जाम नहीं मिलना चाहिए, नहीं तो रिहर्सल को लेट हो जाएँगे”, सोच कर कहीं ब्रेक न लिया। और दिल्ली के नज़दीक आ ही गए। पता कैसे चला, मालूम है? जानलेवा सड़कों ने हमारा स्वागत किया भई। और धूल ने भी, और अँधाधुन ड्राइविंग, और हॉर्न की आवाज़ें। जब सामने बोर्ड देखा, “वज़ीराबाद” राइट, “शास्त्री पार्क” सीधे, तब लालची ख़याल आया कि यार माँ के घर चली जाती हूँ, रिहर्सल के लिए अभी और पच्चीस किलोमीटर जाना होगा, और फिर उनको अचार और गंधक जल भी तो देना है!
क़िस्सा नंबर 6: हू इज़ देयर? संक्षिप्त में बताया जाए तो देहरादून में बहुत मज़े किए, बात कर के भी, और चुप रह कर भी। और दीदी और भैया के हाथ के पकवान खा कर आत्मा भी प्रफुल्लित हो उठी। मैं घर के दो लोगों से लगभग बीस साल बाद मिली, और तीसरे से भी काफ़ी सालों बाद। लोग कहते हैं न, “लिविंग इन द मोमेंट” – ऐसी ही रही हमारी मुलाक़ात। न पीछे का, न आगे का कुछ बतियाया गया, बस जो अभी सामने था, उसी की बात हुई। जैसे कि भैया के हाथ के बने भांति भांति के […]
क़िस्सा नंबर 5: और क्या ही चाहिए! अभी याद आ रहा तो पूरी जर्नी का अभी बता रही, एक ऐसा अनुभव जो बार बार, हज़ार बार हुआ। मैं ऐक्टिवा चला रही हूँ, और अचानक मुझे बस हाथ दिखते हैं हैंडल पर, अपने ही, पर आँखें किसी और की हैं। मेरे कंट्रोल में नहीं है गाड़ी, पर सब ठीक है। दो तीन बार इस स्थिति में इतनी गहराई आ गई, कि बहुत एफ़र्ट लगा कर ख़ुद को लौटना पड़ा। इसको “who’s there” स्टेट मान कर चलते हैं। अब अपुन टिहरी वाले रस्ते पर मस्त है। ट्रैफ़िक काफ़ी कम है इधर। थोड़ी […]
क़िस्सा नंबर 4: शिव, गंगा, दिया, और चाँद तो फिर है ही! बाहर मेन रोड पर पीले रंग की दीवार के एंट्रेंस पर लिखा है, “पुरुषोत्तम नन्द महाराज आश्रम, वशिष्ट गुहा आश्रम” ऐसा ही कुछ। बाजू में ऐक्टिवा खड़ी कर के सीढ़ियाँ उतरना शुरू किया, और उतरते उतरते गंगा किनारे बैठने का ख़याल छलांग मार रहा था, गुफ़ा के दर्शन के साथ साथ। कुछ सीढ़ियाँ उतरते ही, राइट साइड में एक साधू बैठे थे, नज़रें मिलीं, और प्रणाम किया, उनकी स्माइल मानो आशीर्वाद बरसा रही हो। उसके आगे की उतराई में कुछ प्राणी और मिले, इन्क्लूडिंग गाय। नीचे पहुँचते एक […]
कुछ पहचान ओवरलैप भी हैं। जैसे कुछ पश्तून भी पंजाबी बोलते हैं। कृपया ध्यान दे।) शाही किले लाहौर का यह चित्र है। पीछे बादशाही मस्जिद की मीनारे दिख रही है। ये चित्र पाकिस्तान की यात्रा का है। 2005 में मैं अपने विद्यालय स्कूल ऑफ़ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स – (जे एन यू ) के सौजन्य से पाकिस्तान अपने सहपाठियों के साथ गया था। जैसा की एक छवि बनी हुयी थी, पाकिस्तान उससे बहुत अलग लगा। पाकिस्तानी लोग भारतीय पर्यटकों से मिलकर बहुत खुश होते हैं।लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर बात करने पर आक्रामक हो जाते हैं। कई बार तो ऐसा हुआ […]
क़िस्सा नंबर 3: तेरा ही गीत, तेरा संगीत चहुँ ओर लक्ष्मण झूला के पहले पार्किंग के लिए पचास रूपए की टिकट कटती है। इस पर पैनिक अटैक आते ही एक महिला के सामने जा खड़ी हुई जो अपनी दुकान के बाहर खड़ी थीं। फ़ुल प्रोफ़ेशनलिज़्म से अपुन का इंस्टेंट ट्रीटमेंट करते हुए दीदी ने कहा “अरे झूले के बाहर ही होटल के सामने पार्क कर देना, यहाँ तो बार बार पचास की आहुति मांगते हैं सुसरे”। एकदम भावुक कर दिया दीदी ने अपने दिल की आवाज़ सुन कर। लक्ष्मण झूला के इस छोर पर मंकी पीपल की शरारतें देख कर […]
पढ़ें क़िस्सा नंबर 2: सवा घंटे वाला चाय ब्रेक अपर गंगा कैनाल रोड पर आगे का नज़ारा और सरसराती हवा ने माहौल एकदम मस्त कर दिया राइड का। राइट साइड (ईस्ट) में सूर्योदय हो रहा था और लेफ़्ट साइड में नहर किनारे लहराते पेड़। अपने को नॉर्थ की तरफ़ निकलने का है। खतौली से लेफ़्ट गए, कुछ-एक गाँवों से निकले, और फिर आ गया दिल्ली-हरिद्वार हाइवे। मक्खन है जी सड़क। अब तक के रास्ते पर DL नंबर की भरमार है, लगता है आधी दिल्ली हरिद्वार में मिलेगी। करीब दो घंटे में हरिद्वार से पहले एक ढाबे पर दूसरा चाय ब्रेक […]
पढ़ें क़िस्सा नंबर 1: सोलो बोल्ड है म्यूज़िक फ़ुल ऑन बज रहा है, और रास्ता अक्षरधाम मंदिर से ग़ाज़ीपुर की ओर बढ़ रहा है। कुछ दिन पहले किसान आंदोलन के स्थान पर थे तो याद रहा कि रोड ब्लॉक होगा। खोपचे वाली सड़क के घुमावदार रास्ते पार कर के फिर से हाइवे पकड़ लिया गया। कुछ ही देर में ईस्टर्न पेरीफ़ेरल एक्सप्रेसवे (ई.पी.ई) ने स्वागत किया हमारी नन्ही ऐक्टिवा का। यहाँ एक बात साफ़ कर देनी ज़रूरी है: अगर ख़तरों के खिलाड़ी होने का ख़िताब चाहिए तो दिल्ली की सड़कों पर, मद्धम लाइट में, छोटा दुपहिया वाहन चलाएँ। ये एहसास […]
अबे ये क्या टाइटल हुआ ब्लॉग पोस्ट का? वो भी ट्रैवल पोस्ट, ऊपर से ऐसा कुछ धमाल भी नहीं कर आए हो। हज़ारों फ़्री सोल हैं, जो नेचर के कॉल (nature’s call नहीं) अटेंड कर के इधर उधर अफ़रा तफ़री करते ही रहते हैं। तुम कौन हो बे, इतना एक्साइटेड हो कर एक चिन्दी बात का बबाल कर रहे?तो इन सब बातों का रिस्पॉन्स इस पोस्ट की कहानी दे ही देगी, ऐसी मंगल कामना के साथ, जय फ़्री राम करते हैं। तो साहब, इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं सच्चे हैं, जिनका अपुन की जर्नी से डायरेक्ट रिश्ता है। […]
सीधे-साधे लोग, सिंपल लिविंग और साफ़-सुथरा खाना – हरियाणा को सीधे तौर पर जानने के लिए इतना समझ लेना काफी है. पूरे तरीके से एक्सपीरियंस करना भी मुश्किल बात नहीं, दिल्ली के ठीक बराबर में जो है. दुनिया भर की पैसेंजर ट्रेनें हैं, दिल्ली से राजस्थान, पंजाब जाती कोई भी ट्रैन पकड़ लो,आप पहुँच जाओगे।
“जब आप घूमने के लिए कहीं जाते हैं, तो बेशक एक मोमेंट के लिए ही सही, घर की याद आई है?”
नार्थ ईस्ट की कहानी में आगे बढ़ने से पहले आप हमें ये बताइए
संजोग और समय के इस अलौकिक चक्र में हम बावरे बंजारे इसी संभाव के साक्षी थे! बर्फ़ की सफ़ेदी, वंडरलस्ट के दिखावे और हनीमून की गर्माहट से दूर, इस चिलमयी दुनिया में, हमारे और हिमालय के इस हिस्से के बीच, शोर, शान्ति और समन्वय का जो संभाव बना न — बस उसी का नाम मनाली है !
महामारी फैल रही है और ट्रैवल खुल रहा है। महीनों से अपने अपने शहरों में कैद जनता में भड़क बैठ चुकी है, और इस बात में कोई दो राय भी नहीं होनी चाहिए। इजी एंट्री ऑपरेशनल होते ही, मनाली और ऐसे दूसरे हॉटस्पॉट्स में जो तांडव होना है, उसका वर्णन वन्डरलस्ट की हिस्ट्री के लिए एक्सर्प्ट का काम करेगा। पिछले कई दिनों से आप सब ने हमारे इन्बॉक्सेज़ में चरस बो रखी है — “कोई घर है बढ़िया, 5 – 6 महीनों के लिए?” उधर आपके वर्क फ्रॉम होम का ऐलान हुआ और आपदा को अवसर में बदलने की ठाने आप हमारे इनबॉक्स में पहुँच गए! तो इतने सारे मेसेजेज़ को रिप्लाई करने की जगह, हमने सोचा कि एक लिस्ट कम्पाइल करके वेबसाइट पे टाँग देते हैं!
ये रहे कुछ ऐसे अड्डे, जहाँ आप कोरोना की भसड़ से दूर, शांति से एकाध महीने तो रह ही सकते हैं! हर पते के साथ घर के होस्ट के कॉन्टैक्ट डिटेल्स भी हर घर या अड्डे की डिस्क्रिप्शन में है. आप अपनी सुविधा अनुसार हमसे जान पहचान का इस्तेमाल कर इन घरों पर गेस्ट बनकर पधार सकते हैं!
It was our last camping on this expedition. It had not been that simple. 6 people, all from different corners of India–we had been moving continuously in a van. Fighting our comforts to go out and film, we had been hunting camping spots every evening. And yet, at the end of all, we had the best of our mornings.
We were in Cherrapunji — the wettest place on earth!
This 11-day expedition, by now, had exposed us to a lot of mysteries like this one. After sailing to and back from the world’s largest river island, we had experienced a cultural shock at the Hornbill. To chill out, we even went fishing at one of our homes in Assam. And today, on the 8th day of this trip, we were headed to Meghalaya.
तरुण गोयल साहब की ‘सबसे ऊंचा पहाड़’ और माउंट त्रिउंड की चढ़ाई के अलावा धर्मशाला से हमारी कुछ ख़ास जान पहचान तो अब तक नहीं हुई थी! मेन सिटी से 15 मिनट की दूरी पर धौलाधार की छांव में तीन चार दिन चिल करने का आईडिया था! ऊपर से खबर ये थी कि कैंप लगाने की जगह एक आइलैंड पर किसी पहाड़ी नदी किनारे है!
असंख्य बांसों के छाए में पली बढ़ीं कढ़ी पत्तों की खुशबू में धर्मशाला की अलग पहचान लेकर हम इस ट्रिप से वापस लौटे – एक और नई ट्रिप प्लान करने के लिए! आपको हमारी ये वाली ट्रिप कैसी लगी, हमें कमैंट्स सेक्शन में ज़रूर बताईयेगा! अपना और अपनों का ध्यान रखें, स्वस्थ रहे, खुश रहे! हम मिलते हैं आपसे बावरे बंजारों की अगली वीडियो में!
अगर सिर्फ लिखने की ही बात है, तो हम अपने पैरों को पंख और आपके मन को पीस लिख सकते हैं! पर अभी हमारा मन ऐसा कुछ लिखने का नहीं है — अभी तो हमारे दिमाग में सिर्फ एक क़िस्सा ए दानाई ने घर बना रक्खा है। पर यह क़िस्सा शुरू करने से पहले आपके लिए यह जानना ज़रूरी है कि क़िस्सा ए दानाई आख़िर है क्या बला! तो कान लगा के ध्यान से देखिएगा – क़िस्सा ए दानाई में दो वर्ड्स हैं, पहला क़िस्सा, जिसका माने है किस्सा, कहानी या वृतांत; और दूसरा वर्ड है दानाई, जिसका मतलब होता है विज़डम! तो जी, इस बोडोलैंड वाली ट्रिप पर जिस विज़डम से हम जिए, ये उसी की बात है – क़िस्सा ए दानाई।
वैसे ये क़िस्सा ए दानाई सुनते सुनते आपका इस बात पर हमें लताड़ने का मन कर सकता है कि हमारी लैंग्वेज प्योर और पारिवारिक क्यों नहीं है! हम बस इतना कहेंगे कि जिस दिन राजश्री प्रोडक्शन वाले अपनी फिल्मों की स्क्रिप्ट या डायलॉग हम से लिखवाने लगेंगे, उस दिन हम वो भी कर लेंगे। अब इससे पहले कि हम शूर्पनखा की तरह हांडते – हांडते, राम और लक्ष्मण पर फ़िदा हो कर अपनी नाक कटवा लें, हम अपने क़िस्सा ए दानाई पर आ जाते हैं।
Dwijing Festival is an annual festival held during the new year’s time, from Dec 27th to Jan 7th every year. We were invited by Bodoland Tourism and Assam Tourism to attend the festival, through their program, Ambassadors of Bodoland. While the festival lasts for 12 days, we spent 3 days here, and in these three days, we were not able to see it in its entirety. We couldn’t eat all the food, could not drink all types of local wines, dance with locals was never getting enough and the art installments were so thought-provoking that you might be spending days at a time and still not be fulfilled by the meanings.
सारे परफॉर्मेंसेज़ देख कर हमको आख़िरकार वो चीज़ समझ आती है जिसके लिए नागा लोगों का यह परफॉर्मेंस होता है. परफॉर्मेंसेज़ का टॉपिक इतना सीरियस होते हुए भी सब मजाकिया तौर पर हो रहा होता है. नकली गन, नकली गोली और मारना मरना सब नकली। हालाँकि इसी परफॉर्मेंस के थ्रू ये लोग युद्ध के मैदान में होने वाले नुकसान को दिखाते हैं. यही इस परफॉर्मेंस का मकसद होता है. असल वॉर की एक पैरोडी करके ये लोग ह्यूमंस की लड़ाई वाली मानसिकता पर गहरी चोट करते हैं. बेशक इन लोगों में इस बात की समझ पर्सनल एक्सपीरियंस के बाद आयी हो, पर दर्शकों को अपनी पर्फोमन्स से इस बात पर सोचने को मजबूर करते हैं.
हमलोग कोहिमा शहर एक्स्प्लोर करते हुए हार्नबिल फेस्टिवल की तरफ बढ़ रहे थे. कलाम, लिंकन, इंस्टीन और एमिनेम — अगर कोई शहर आपको इन सब को एक ही फ़्रेम में दिखाता है, तो आपको एक बार ऐसे शहर को क़रीब से ज़रूर जानना चाहिए. हमारे पास कोहिमा में बिताने का ज्यादा समय तो नहीं था, पर दुबारा यहां आने के लिए शहर की इतनी झलक काफ़ी थी. कोहिमा से किसामा जाकर अब बारी थी नागालैंड के सबसे फ़ेमस ‘हॉर्नबिल फेस्टिवल’ अटेंड करने की. यही मौका था यहां के लोगों को और अच्छे से जानने का. जब तक हम आपसे नार्थईस्ट यात्रा की आगे की कहानी बताएं, तब तक आप आप माजुली में हमारे पहले दो दिनों की कहानी ज़रूर पढ़ लीजिए।
We got to know and experience the raw stories and unadulterated beauty of Bodoland, thanks to the Ambassadors of Bodoland program by Bodoland Tourism. We were hosted by Rootbridge Foundation on this 8-day extravaganza in ever-awesome Assam! Apart from the other stories that we had gathered, we also got to have some sense of what(s), why(s) and a couple of other questions! Let’s begin!
On our trip to the Bodoland as Ambassadors Of Bodoland during Dwijing Fest of 2019-20, we got to spend a day amidst the Tiwa hospitality and culture. Here is a collection of photos that we could bring by.
‘पीरियड्स’, ‘माहवारी’, ‘महीने के वो दिन’, ‘अशुद्ध होना’, ‘डाउन होना’ जैसे शब्दों की आड़ लेकर स्कूलों में अपने स्कर्ट्स पर चॉक की सफ़ेदी, गाँवों में राख के टेक्सचर और छोटे शहरों में पुराने कतरनों के नीचे एक पूरी पीढ़ी ने पूरे ताम झाम से एक सिंपल बायोलॉजिकल प्रोसेस के नाम पर सबका चूतिया (माफ़ करना, गुस्से में इधर उधर हो जाता है!) काटा है! और, आज भी यही एक्सपेक्ट किया जा रहा है कि वैसे ही ये वाली पीढ़ी भी कटवाती रहे — अब ये तो होने से रहा! ट्रैवल ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों से ही ट्रिप्स और ट्रेक्स पर पीरियड्स को लेकर होने वाली परेशानियां, दिक्कतें और हिडेन कॉम्पलेक्सेज़ के बारे में लिखने और बात करने की चुल रही है – लॉकडाउन में ये भी निपटा ले रहे हैं!
सुबह अपना कैमरा उठाया और गांव में घूमने निकल पड़े. गांव के सभी घर, घाटी की एक साइड, थोड़ी-ऊंचाई पर बसे हुए थे. सामने वाला पहाड़ पेड़ों का घुप्प जंगल था. बढ़िया धूप खिली हुई थी और गांव के लोग अपने खेतों में जाने की तैयारी कर रहे थे. घाटी से एक नाला होकर निकलता है, जो आगे नीरू धारा में जाकर मिलता है. नीरू धारा भदरवाह टाउन से होते हुए डोडा जाकर चेनाब नदी में मिल जाती है. हमने इसी नाले के साथ साथ ऊपर की ओर चलना शुरू कर दिया. रास्ते में कई लोग अपनी भेड़- बकरियों के साथ जाते दिखे, हम भी इन्हीं के साथ साथ चलते गए, बातें करते गए. कई लोग अपने परिवारों और अपने बैलों के साथ खेतों में काम कर रहे थे. सुबह की धूप और हवा में मिट्टी से उठती खुशबु घुलकर ऐसे चढ़ रही थी कि चलने का अलग ही सुर बन चुका था. हम लोग फ़ोटो खींचते, रुकते, चले जा रहे थे.
जम्मू बस स्टॉप से पहले हमने भदरवाह के कोई डायरेक्ट बस देखी — अगर मिल जाती तो डोडा से नहीं बदलनी पड़ती. पर जम्मू से हमें डोडा के लिए ही बस मिली! जम्मू कश्मीर की लोकल बसों में घूमना जरूर बनता है. HRTC से एकदम अलग एक्सपीरियंस है. यहाँ की बसें, बसें कम, रंग बिरंगे, सजे हुए ट्रक ज़्यादा लगते हैं. और इनमें सफ़र करने वाले लोग, बस अब क्या ही बताया जाए!
Kala meaning ‘color black’ and Mati meaning soil, Kalamati would be the name of a place where the soil is black – in fact, one of the blackest we have ever got our eyes upon — thanks to the abundance of various salts and other ores. Kalamati is situated on the banks of a stream, also named as Kalamati that works as the border for India and Bhutan. Not quite famous in the tourism scene of India, Kalamati is a popular picnic destination for locals of Chirang district in Assam. However, the locals of Chirang district are not the only […]
कोरोना के होने से पहले ही हमने क्वारंटाइन लाइफ कैसी होती है, इसका टीज़र देख लिया था. हमें तब पता नहीं था कि इसे ‘क्वारंटाइन होना’ कहेंगे। हमप्ता के बालू घेरा बेस कैंप पर पचपन घंटे बारिश में फंसने के बाद अपना झोला उठाकर वापिस मनाली के लिए निकल लिए।
We are pretty sure that when it comes down to places to visit in Assam, a list of well-advertised places with names of the city of Guwahati, Kamakhya Temple, Kaziranga National park, Tezpur, Sialkuthi, Majuli, and of course the all-mighty Brahmaputra pop up. But what if we tell you that Assam has much more up its sleeve than what usually pops up in the trendy listicles. On our exposure to the interiors of rural Assam with the Ambassadors Of Bodoland at the Dwijing Fest 2020, we dropped by in this valley called Umswai in West Karbi Anglong district of Assam. […]
“भाईजी, सामने पहाड़ की वो चोटी देख रहे हैं, वो न जाने कितनी सदियों से यहां है! पहाड़ पार करने वाले कितने लोग आते-जाते रहे हैं, पर ये पहाड़, ये चोटियां, कहीं नहीं गई हैं. ये यहीं रहे हैं,और यहीं रहेंगे. मेरी सलाह लें तो आप अगली बार फिर आना, थोड़ा जल्दी, और कामना करके आना कि उस बार मौसम कि कृपा आप पर रहे और आप हमप्ता की यात्रा पूरी कर पाएं.” — ‘सार’ के ये भारी शब्द कहते हुए चंद्रा भाई ने हमें बालू घेरा से वापस रुख़सत किया.
से तो सर्दियों की सुबह थी पर दिल्ली और हिमाचल की ठंड भोग चुके अपन लौंडों को जोधपुर की ठंड में एकदम कोज़ी कोज़ी लग रहा था! पढ़िए जोधपुर में एक दिन का Thursday Throwback
बस, यही है अपना सीक्रेट अड्डा – बागोरी की ओर जाने वाले मेन रोड से राइट होकर कुछ 300 मीटर दूर। कैम्प सेट करिए, आग के लिए बेहिसाब लकड़ी, और नहाने धोने के लिए बढ़िया साफ पानी – कैम्प करने के लिए और क्या चाहिए? अगर आपको कुछ ‘और’ पूछना या जानना है, तो कमेंट्स में पूछ लीजिए।
यहां से अपने को सामने वो पहाड़ दिख रहा था जिसके पार जाना था. मन तो था कि बिना रुके निकल लें, शाम को सीधा लाहौल, छतरू पहुंचे और वहीं रात बिताकर अगले दिन काजा से आती पहली बस में बैठकर ही मनाली पहुंच जाएंगे। पर अपने साथ दो पंटर और थे, उनको ये प्लान थोड़ा कम सूट करता। इस करके हमने यहीं रुकने का मन बना लिया और अपना टेंट यहीं रॉकी भाईजी की दूकान के करीब गाड़ दिए. अब इंतज़ार बस अगली सुबह का था, और फिर अपन लोग हमप्ता के उस पार होंगे।
अभी तक तो हमें भी इतना ही पता है. बाकी, आईडिया ये है कि रेस, लोंगेवाला बॉर्डर, वॉर मेमोरिअल्स देखा जाएगा! जैसलमेर शहर और किले भी घूमने जाएंगे। वापस आकर आपको कहानी सुनाएंगे और फिल्म भी दिखाएंगे – The Border की.
इन सब चीज़ों के अलावा, इन चीज़ों को भी इग्नोर मत करियेगा! 🙂
कार्निवाल शायद धीरे धीरे सीप इन कर रहा था। ऐसा लग रहा था कि अब तक जो कुछ सीखा है, जितना जाना है और जितना आता है – सब कुछ इस ट्रिप के लिए ही है. अपने रामायण में भी तो दोनों भाईयों की लर्निंग्स को अयोध्या काण्ड में ही टेस्ट किया गया है. क्या ये हमारी ट्रिप का अयोध्या काण्ड चल रहा था?
पढ़िए 15 अगस्त वाली ट्रिप पर वशिष्ठ मनाली हमप्ता पास के रस्ते हमने आज़ादी का जश्न कैसे मनाया!
स्पीति वैली के लोगों की लाइफ तो मुश्किल है ही, ट्रैवेलर्स के लिए यहाँ पहुँचना उससे भी ज़्यादा डिफ़ीकल्ट है, ख़ास कर के सर्दियों में। जब नवंबर दिसंबर में बर्फ पड़ना शुरू होती है और रोहतांग के साथ साथ कुंजुम ला भी बंद हो जाता है, सर्दियों में स्पीति पहुंचने का सिर्फ एक रास्ता रह जाता है! हिंदुस्तान-तिब्बत हाईवे पर सतलुज नदी का पीछा करते हुए किन्नौर से आगे निकल कर स्पीति और सतलुज के संगम पर सतलुज छोड़ के स्पीति के साथ हो लेने वाला ये रास्ता ही विंटर स्पीति एक्सपेडिशन्स की मार्केट चलाता है.
लास्ट मंडे जाते जाते हमने आपको Kashmir Great Lakes की ideal itinerary दी थी। वैसे तो कुछ भी करने का सबका अपना अपना तरीका और ताम झाम होता है, फिर भी किसी और के एक्सपीरियंस से अगर कुछ सीखने को मिल रहा हो तो सीखने में कोई हर्ज़ नहीं करना चाहिए। बताने को तो काफी है, जैसे आपको क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए और यह भी बता सकते हैं कि हमने क्या किया था और कैसे किया था। अगर किसी एक चीज़ पर फ़ोकस करेंगे तो दूसरी वाली पीछे रह जाएगी, इसलिए दोनों का एक बैलेंस्ड मिक्स लिखने की कोशिश कर रहे हैं। हम बस इतना कहना चाहते हैं कि जाइए, ज़रुर जाइए पर उस डेस्टिनेशन या ट्रेक की कुछ वाइटल इनफार्मेशन जाने बिना नहीं और कश्मीर के ग्रेट लेक्स ट्रेक के लिए तो इस प्रॉब्लम को हम सॉल्व किये देते हैं अभी।
अब आप इस गाँव में रात में नहीं रुक सकते – ऑफिशियली! गाँव के शाशन तंत्र ने ऐलान किया है, अपने प्यारे जमलू ऋषि के नाम पर! वैसे ये अच्छा ही है – कुछ तो बकैती कम हुई. धंधा वैसे बराबर ही चल रहा होगा! ऐसी सेंसिटिव जियोग्राफी में इतने सारे लोगों को इतना ज़्यादा टाइम स्पेंड करना कहीं से भी सही नहीं था. टूरिज़्म इंड्यूस्ड कूड़ा भी बढ़ ही रहा था. खैर, आप ही डिसाइड करिए कि ये मिथ है या पॉपुलिज़्म या बकैती!
एक अनदेखे, अनकहे और अनसुने गोल की तरफ़ हम निकल पड़े थे। तय यह हुआ था कि जो लीग बाहर वाले परफॉर्मर्स होंगे, उनके खर्चे का कुछ हिस्सा हम उठाएंगे ताकि उनके लिए एक मोटिवेशन भी रहे और कम्फर्ट भी – अब कहाँ पैसे होते हैं अपने इण्डियन आर्टिस्टों के पास। पर पैसे तो हमारे पास भी नहीं थे। और अगर हम किसी और को आर्टिस्ट मन रहे थे तो खुद को क्यों न मानें?
देखो रास्ता तो वही लोग खोज सकते हैं जो भटके हैं , जिनको भटकने की खबर नहीं उनको मंज़िल से क्या! पिछले दिन मनाली के चक्कर में हम लोग जादुई बालकनी से नीचे उतर आए. नीचे उतर कर भी नज़ारे कम नहीं थे हमारे लिए. ब्यास नदी के किनारे-किनारे वशिष्ठ से मनाली का एक गोल चक्कर लगाया. कसम से ऐसी किसी शाम, शान्ति से मनाली शहर का चककर लगाना भी मन के सुकून के लिए बहुत है. ऐसा नहीं है कि हमारी ही बात आख़िरी है, पर तब भी नज़ारा तो देखो जनाब! दिन भर हल्की-हल्की बूंदा-बांदी के बाद मौसम […]
हैप्पी बर्थडे। हम जानते हैं कि तुम यह चिट्ठी पढ़ोगी। तुम्हें हिंदी का अ ब स भी नहीं पता है, तब भी तुम पढ़ोगी। तुम्हारे-हमारे समय में टेक्नोलॉजी जो है! हमारी तुम्हारी भाषा के बीच का अंतर ही खत्म कर दिया। पर समय और स्पेस का अंतर नहीं पाटा जा पाया है। अभी तो मुश्किल ही लगता है यह सोच पाना। तुम्हारे सनराइज़ का टाइम जो अलग है!
बहुत से लोग, संस्थाएं और सरकार इसे बचाने की कोशिश में लगे हैं। पर, माजुली को बचाने के लिए अभी तक जितने भी प्रयास किये गए हैं, कुछ ज्यादा सफल नहीं रहे। जरुरत है कि ज्यादा से ज्यादा लोग माजुली पहुँचे और लिखकर, मूवी बनाकर या किसी भी तरीके से माजुली पर मंडराते खतरे के बारे में लोगों को बताएं। सरकार और संस्थाओं के साथ-साथ लोगों का साथ ज्यादा जरुरी है, नहीं तो माजुली नक़्शे से ही गायब हो जाएगा।
जब लिखने बैठे तो शुरुआत में बस दो चार अल्फ़ाज़ इधर उधर कर पाए और एक बार फिर से कश्मीर को धरती का जन्नत कहते कहते रुक से गए। फिर हमें लगा कि आपको वह कश्मीर बताते हैं जिसे न तो ख़ुसरो ने देखा होगा और एक मुग़ल बादशाह के वहां जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। हम बात कर रहे हैं कश्मीर में ट्रेकिंग की — ख़ास तौर पर Kashmir Great Lakes Trek की।
जब तक सरकार या आर्मी की ओर से कोई ऑफिसियल स्टेटमेंट नहीं आ जाता है तब तक बैठिये, मिल कर सियाचिन ग्लेशियर जाने के सपने देखते हैं. सपने से याद आया के साल्तोरो रिज पर खड़े हो कर कराकोरम रेंज को देखने का सपना तो हम भी देख रहे है. उस दिन का इंतज़ार रहेगा!
From Markha valley Trek to the infamous Chadar Trek, we would certainly bet on Ladakh being one of the best trekking destinations of India. We thought about sharing some of the best treks in Ladakh that you could pick up to explore and really understand why ‘it’ is what ‘it’ is!