‘पीरियड्स’, ‘माहवारी’, ‘महीने के वो दिन’, ‘अशुद्ध होना’, ‘डाउन होना’ जैसे शब्दों की आड़ लेकर स्कूलों में अपने स्कर्ट्स पर चॉक की सफ़ेदी, गाँवों में राख के टेक्सचर और छोटे शहरों में पुराने कतरनों के नीचे एक पूरी पीढ़ी ने पूरे ताम झाम से एक सिंपल बायोलॉजिकल प्रोसेस के नाम पर सबका चूतिया (माफ़ करना, गुस्से में इधर उधर हो जाता है!) काटा है! और, आज भी यही एक्सपेक्ट किया जा रहा है कि वैसे ही ये वाली पीढ़ी भी कटवाती रहे — अब ये तो होने से रहा! ट्रैवल ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों से ही ट्रिप्स और ट्रेक्स पर पीरियड्स को लेकर होने वाली परेशानियां, दिक्कतें और हिडेन कॉम्पलेक्सेज़ के बारे में लिखने और बात करने की चुल रही है – लॉकडाउन में ये भी निपटा ले रहे हैं!
HIKING के किस्से !
कोरोना के होने से पहले ही हमने क्वारंटाइन लाइफ कैसी होती है, इसका टीज़र देख लिया था. हमें तब पता नहीं था कि इसे ‘क्वारंटाइन होना’ कहेंगे। हमप्ता के बालू घेरा बेस कैंप पर पचपन घंटे बारिश में फंसने के बाद अपना झोला उठाकर वापिस मनाली के लिए निकल लिए।
“भाईजी, सामने पहाड़ की वो चोटी देख रहे हैं, वो न जाने कितनी सदियों से यहां है! पहाड़ पार करने वाले कितने लोग आते-जाते रहे हैं, पर ये पहाड़, ये चोटियां, कहीं नहीं गई हैं. ये यहीं रहे हैं,और यहीं रहेंगे. मेरी सलाह लें तो आप अगली बार फिर आना, थोड़ा जल्दी, और कामना करके आना कि उस बार मौसम कि कृपा आप पर रहे और आप हमप्ता की यात्रा पूरी कर पाएं.” — ‘सार’ के ये भारी शब्द कहते हुए चंद्रा भाई ने हमें बालू घेरा से वापस रुख़सत किया.
बस, यही है अपना सीक्रेट अड्डा – बागोरी की ओर जाने वाले मेन रोड से राइट होकर कुछ 300 मीटर दूर। कैम्प सेट करिए, आग के लिए बेहिसाब लकड़ी, और नहाने धोने के लिए बढ़िया साफ पानी – कैम्प करने के लिए और क्या चाहिए? अगर आपको कुछ ‘और’ पूछना या जानना है, तो कमेंट्स में पूछ लीजिए।
यहां से अपने को सामने वो पहाड़ दिख रहा था जिसके पार जाना था. मन तो था कि बिना रुके निकल लें, शाम को सीधा लाहौल, छतरू पहुंचे और वहीं रात बिताकर अगले दिन काजा से आती पहली बस में बैठकर ही मनाली पहुंच जाएंगे। पर अपने साथ दो पंटर और थे, उनको ये प्लान थोड़ा कम सूट करता। इस करके हमने यहीं रुकने का मन बना लिया और अपना टेंट यहीं रॉकी भाईजी की दूकान के करीब गाड़ दिए. अब इंतज़ार बस अगली सुबह का था, और फिर अपन लोग हमप्ता के उस पार होंगे।
We got a chance to talk to Mohith about his walk from Manali to Khardung La and tried to know what is it actually that drives young Indians like him to take up traveling as a means of self-exploration. Read on the full conversation: