We started the trek with an aim of finishing it within 3 days from Aru valley and there was no better feeling than finishing it within the target time. A trek that is otherwise sold commercially as a 7-day trek, could be so well explored within 3 days. We will be sharing the detailed travelogue in some time. Do let us know of your queries and questions if you are planning to go for the Tarsar Marsar Lake Trek.
CAMPING के किस्से
It was our last camping on this expedition. It had not been that simple. 6 people, all from different corners of India–we had been moving continuously in a van. Fighting our comforts to go out and film, we had been hunting camping spots every evening. And yet, at the end of all, we had the best of our mornings.
We were in Cherrapunji — the wettest place on earth!
तरुण गोयल साहब की ‘सबसे ऊंचा पहाड़’ और माउंट त्रिउंड की चढ़ाई के अलावा धर्मशाला से हमारी कुछ ख़ास जान पहचान तो अब तक नहीं हुई थी! मेन सिटी से 15 मिनट की दूरी पर धौलाधार की छांव में तीन चार दिन चिल करने का आईडिया था! ऊपर से खबर ये थी कि कैंप लगाने की जगह एक आइलैंड पर किसी पहाड़ी नदी किनारे है!
असंख्य बांसों के छाए में पली बढ़ीं कढ़ी पत्तों की खुशबू में धर्मशाला की अलग पहचान लेकर हम इस ट्रिप से वापस लौटे – एक और नई ट्रिप प्लान करने के लिए! आपको हमारी ये वाली ट्रिप कैसी लगी, हमें कमैंट्स सेक्शन में ज़रूर बताईयेगा! अपना और अपनों का ध्यान रखें, स्वस्थ रहे, खुश रहे! हम मिलते हैं आपसे बावरे बंजारों की अगली वीडियो में!
हमलोग कोहिमा शहर एक्स्प्लोर करते हुए हार्नबिल फेस्टिवल की तरफ बढ़ रहे थे. कलाम, लिंकन, इंस्टीन और एमिनेम — अगर कोई शहर आपको इन सब को एक ही फ़्रेम में दिखाता है, तो आपको एक बार ऐसे शहर को क़रीब से ज़रूर जानना चाहिए. हमारे पास कोहिमा में बिताने का ज्यादा समय तो नहीं था, पर दुबारा यहां आने के लिए शहर की इतनी झलक काफ़ी थी. कोहिमा से किसामा जाकर अब बारी थी नागालैंड के सबसे फ़ेमस ‘हॉर्नबिल फेस्टिवल’ अटेंड करने की. यही मौका था यहां के लोगों को और अच्छे से जानने का. जब तक हम आपसे नार्थईस्ट यात्रा की आगे की कहानी बताएं, तब तक आप आप माजुली में हमारे पहले दो दिनों की कहानी ज़रूर पढ़ लीजिए।
‘पीरियड्स’, ‘माहवारी’, ‘महीने के वो दिन’, ‘अशुद्ध होना’, ‘डाउन होना’ जैसे शब्दों की आड़ लेकर स्कूलों में अपने स्कर्ट्स पर चॉक की सफ़ेदी, गाँवों में राख के टेक्सचर और छोटे शहरों में पुराने कतरनों के नीचे एक पूरी पीढ़ी ने पूरे ताम झाम से एक सिंपल बायोलॉजिकल प्रोसेस के नाम पर सबका चूतिया (माफ़ करना, गुस्से में इधर उधर हो जाता है!) काटा है! और, आज भी यही एक्सपेक्ट किया जा रहा है कि वैसे ही ये वाली पीढ़ी भी कटवाती रहे — अब ये तो होने से रहा! ट्रैवल ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों से ही ट्रिप्स और ट्रेक्स पर पीरियड्स को लेकर होने वाली परेशानियां, दिक्कतें और हिडेन कॉम्पलेक्सेज़ के बारे में लिखने और बात करने की चुल रही है – लॉकडाउन में ये भी निपटा ले रहे हैं!
सुबह अपना कैमरा उठाया और गांव में घूमने निकल पड़े. गांव के सभी घर, घाटी की एक साइड, थोड़ी-ऊंचाई पर बसे हुए थे. सामने वाला पहाड़ पेड़ों का घुप्प जंगल था. बढ़िया धूप खिली हुई थी और गांव के लोग अपने खेतों में जाने की तैयारी कर रहे थे. घाटी से एक नाला होकर निकलता है, जो आगे नीरू धारा में जाकर मिलता है. नीरू धारा भदरवाह टाउन से होते हुए डोडा जाकर चेनाब नदी में मिल जाती है. हमने इसी नाले के साथ साथ ऊपर की ओर चलना शुरू कर दिया. रास्ते में कई लोग अपनी भेड़- बकरियों के साथ जाते दिखे, हम भी इन्हीं के साथ साथ चलते गए, बातें करते गए. कई लोग अपने परिवारों और अपने बैलों के साथ खेतों में काम कर रहे थे. सुबह की धूप और हवा में मिट्टी से उठती खुशबु घुलकर ऐसे चढ़ रही थी कि चलने का अलग ही सुर बन चुका था. हम लोग फ़ोटो खींचते, रुकते, चले जा रहे थे.
कोरोना के होने से पहले ही हमने क्वारंटाइन लाइफ कैसी होती है, इसका टीज़र देख लिया था. हमें तब पता नहीं था कि इसे ‘क्वारंटाइन होना’ कहेंगे। हमप्ता के बालू घेरा बेस कैंप पर पचपन घंटे बारिश में फंसने के बाद अपना झोला उठाकर वापिस मनाली के लिए निकल लिए।
“भाईजी, सामने पहाड़ की वो चोटी देख रहे हैं, वो न जाने कितनी सदियों से यहां है! पहाड़ पार करने वाले कितने लोग आते-जाते रहे हैं, पर ये पहाड़, ये चोटियां, कहीं नहीं गई हैं. ये यहीं रहे हैं,और यहीं रहेंगे. मेरी सलाह लें तो आप अगली बार फिर आना, थोड़ा जल्दी, और कामना करके आना कि उस बार मौसम कि कृपा आप पर रहे और आप हमप्ता की यात्रा पूरी कर पाएं.” — ‘सार’ के ये भारी शब्द कहते हुए चंद्रा भाई ने हमें बालू घेरा से वापस रुख़सत किया.
बस, यही है अपना सीक्रेट अड्डा – बागोरी की ओर जाने वाले मेन रोड से राइट होकर कुछ 300 मीटर दूर। कैम्प सेट करिए, आग के लिए बेहिसाब लकड़ी, और नहाने धोने के लिए बढ़िया साफ पानी – कैम्प करने के लिए और क्या चाहिए? अगर आपको कुछ ‘और’ पूछना या जानना है, तो कमेंट्स में पूछ लीजिए।
यहां से अपने को सामने वो पहाड़ दिख रहा था जिसके पार जाना था. मन तो था कि बिना रुके निकल लें, शाम को सीधा लाहौल, छतरू पहुंचे और वहीं रात बिताकर अगले दिन काजा से आती पहली बस में बैठकर ही मनाली पहुंच जाएंगे। पर अपने साथ दो पंटर और थे, उनको ये प्लान थोड़ा कम सूट करता। इस करके हमने यहीं रुकने का मन बना लिया और अपना टेंट यहीं रॉकी भाईजी की दूकान के करीब गाड़ दिए. अब इंतज़ार बस अगली सुबह का था, और फिर अपन लोग हमप्ता के उस पार होंगे।
लास्ट मंडे जाते जाते हमने आपको Kashmir Great Lakes की ideal itinerary दी थी। वैसे तो कुछ भी करने का सबका अपना अपना तरीका और ताम झाम होता है, फिर भी किसी और के एक्सपीरियंस से अगर कुछ सीखने को मिल रहा हो तो सीखने में कोई हर्ज़ नहीं करना चाहिए। बताने को तो काफी है, जैसे आपको क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए और यह भी बता सकते हैं कि हमने क्या किया था और कैसे किया था। अगर किसी एक चीज़ पर फ़ोकस करेंगे तो दूसरी वाली पीछे रह जाएगी, इसलिए दोनों का एक बैलेंस्ड मिक्स लिखने की कोशिश कर रहे हैं। हम बस इतना कहना चाहते हैं कि जाइए, ज़रुर जाइए पर उस डेस्टिनेशन या ट्रेक की कुछ वाइटल इनफार्मेशन जाने बिना नहीं और कश्मीर के ग्रेट लेक्स ट्रेक के लिए तो इस प्रॉब्लम को हम सॉल्व किये देते हैं अभी।
जब लिखने बैठे तो शुरुआत में बस दो चार अल्फ़ाज़ इधर उधर कर पाए और एक बार फिर से कश्मीर को धरती का जन्नत कहते कहते रुक से गए। फिर हमें लगा कि आपको वह कश्मीर बताते हैं जिसे न तो ख़ुसरो ने देखा होगा और एक मुग़ल बादशाह के वहां जाने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। हम बात कर रहे हैं कश्मीर में ट्रेकिंग की — ख़ास तौर पर Kashmir Great Lakes Trek की।
भूख लगी थी तो खाने का जुगाड़ करने के लिए बाहर निकलना पड़ा. तब तक बारिश भी थोड़ी मंदी हो चुकी थी. जिन भाई जी ने टेंट लगाने की जगह दी थी उनके घर पर साथ लाई गई मैगी बनवाई और तुरंत खा-पीकर टेंट में सेट हो गए. टेंट पर पड़ती हल्की बूँदों की पट-पट में कब नींद आयी याद नहीं है. अगले दिन सुबह जब बाहर निकलकर देखा तो सीन ये था।
We got a chance to talk to Mohith about his walk from Manali to Khardung La and tried to know what is it actually that drives young Indians like him to take up traveling as a means of self-exploration. Read on the full conversation:
आपका जाना हुआ, तो आप यहाँ टेंट लगा सकते हैं – दूर से ही आपको बांग्लादेश व्यू पॉइंट का बोर्ड दिख जाएगा. ध्यान रहे कि यह कोई डेजिग्नटेड जगह नहीं है कैंपिंग के लिए, तो हो सकता है कि कभी प्रशासन आकर आपको यहाँ से जाने के लिए कहे.
15 अगस्त वाले वीकेंड पर बागा सराहन और फिर वहाँ से श्रीखंड महादेव जाने का प्लान था अपना। होकर तो आ चुके हैं पर वहाँ से अभी बाहर नहीं निकल पाए हैं। जिसका कभी अंदाज़ा भी न रहा हो वैसा एक्सपीरियंस रहा; जो दिखा वो कल्पना से परे था, जो सुना वो आजतक अन-सुना था – शोर था और शान्ति भी। मॉनसून था तो पूरी वादी में बादल खेल रहे थे और प्रकृति जैसे ओस का पर्दा करे बैठी हो। कभी-कभी बस जब बादल हटते तो दूर क्षितिज दिखता वरना एहसास हवा में तो था पर नज़ारा बंद। रास्ते में […]
Backpacking is considered one of the most efficient and sustainable forms of travel. It rarely does contribute to mass tourism and brings in money to the interiors of a place. Backpacking implies an interesting milieu of intercultural exchanges and learnings. As one of the most ‘aware’ group of travelers and tourists, Backpackers help in reducing carbon footprints – thanks to their ‘jugaads’ and other ways of travel. In the final episode of our web series THAT HARSHIL WEEKEND, we explore and bring to you the charms of Bagori Village. Bagori nests in it, the migrants forced out by the Indo […]
On our backpacking trip to Harshil Valley in Garhwal Himalayas, we are trying to decode backpacking as a means of travel. In Episode 2, watch how we made it to Harshil Valley after we had left for Dayara Bugyal Trek and Camping. Backpacking is considered one of the most efficient and sustainable forms of travel. It rarely does contribute to mass tourism and brings in money to the interiors of a place. Backpacking implies an interesting milieu of intercultural exchanges and learnings. As one of the most ‘aware’ group of travellers and tourists, Backpackers help in reducing carbon footprints – […]
बर्फ़ गई और समय आ गया है पिछले साथ-आठ महीनों से बंद पड़े रस्ते, रोड्स, ट्रेल्स और ट्रेक्स के खुलने का. चटक धूप खिली है और सफ़ेद पाउडर का सूरज और चाँद के साथ नैन-मटक्का भी शुरू हो गया है. बर्फ़ भी उम्मीद से ज़्यादा मिली है, सो उसका भी इन रास्तों और ट्रेक्स पर अपना ही असर है. इधर परीक्षाएं भी ख़त्म होने वाली है, फिर आएंगी गर्मी की छुट्टियां और उत्तर भारत में शादियों के मौसम – आजकल लोगों का हनीमून ‘ट्रेक’ भी हो गया है! कुल मिलाकर देखा जाए तो उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में […]
कोई श्रद्धा से, कोई शौक से, कोई सनक में या पागलपन में – हर साल हज़ारों लोग अपने -अपने मकसद और अरमान लिए श्रीखंड महादेव की यात्रा के लिए आते हैं. कुछ दर्शन कर पाते हैं, कुछ रह जाते हैं. 2018 में भी कुछ ऐसा ही हुआ – करीब 12 से 13 हज़ार लोग श्रीखंड दर्शन करने पहुँचे, लेकिन सिर्फ़ दो से ढ़ाई हज़ार लोगों को ही बाबा के दर्शन मिले. हम बहुत ख़ुश-नसीब रहे कि हमें ऊपर मौसम बेहतरीन मिला। फूल जैसी यात्रा रही और दर्शन अलौकिक! श्रीखंड महादेव ट्रैक आसान तो नहीं है पर नामुमकिन भी नहीं ! […]
Shrikhand Mahadev trek is the saga of speaking stones, boulders called as stairs, flamboyant waterfalls, canals cutting through the ways, muddy ways beyond clouds, scenic snow-clad mountains and all that which is a part of mother nature. The trek is famous as a pilgrimage to the peak of Shrikhand Mahadev where a rock-made Shivling of around 75 feet in height and 46 feet in thickness is situated at a height of 18570 ft in the Indian Himalayas.
पहुंचे तो पता चला कि यहाँ झील के आस-पास टेंट नहीं लगा सकते – सरकारी ऑर्डर है (क्योंकि यहाँ भूत आते हैं – ऐसा लोग कहते हैं )! लो भाई, अब क्या करें!
Have you ever wondered if wandering can be poetic? If no, then Trying Triund should be first in your trek-list. A trek so serene and tranquil with ways so poetic that every single step of yours seems to create music. The Triund top is best known for its quietude which fills you from inside, an enchanting view of Dhauladhar Mountain Range and a large ridge of green grass with a 360-degree view of mountainous beauty. ABOUT THE TREK It is one day trek to the top of Triund Hill amidst the laps of Dhauladhar mountains, also known as ‘the crown […]