Rafting in Rishikesh

अनंत की पुकार | क़िस्सा नंबर 4 : शिव, गंगा, दिया, और चाँद तो फिर है ही!

क़िस्सा नंबर 3: तेरा ही गीत, तेरा संगीत चहुँ ओर

लक्ष्मण झूला के पहले पार्किंग के लिए पचास रूपए की टिकट कटती है। इस पर पैनिक अटैक आते ही एक महिला के सामने जा खड़ी हुई जो अपनी दुकान के बाहर खड़ी थीं। फ़ुल प्रोफ़ेशनलिज़्म से अपुन का इंस्टेंट ट्रीटमेंट करते हुए दीदी ने कहा “अरे झूले के बाहर ही होटल के सामने पार्क कर देना, यहाँ तो बार बार पचास की आहुति मांगते हैं सुसरे”। एकदम भावुक कर दिया दीदी ने अपने दिल की आवाज़ सुन कर। लक्ष्मण झूला के इस छोर पर मंकी पीपल की शरारतें देख कर आधी जनता खिलखिला रही है और आधी चिढ़ रही है।

Monkey in Rishikesh
मंकी पीपल

जो बच गए वो डर रहे हैं, कुछ सामान के लिए, कुछ जान के लिए। अब बन्दर जैसा मिसचीवियस (पापी?) और कोई है भी तो नहीं। सही कहा न? डिस्अग्री कर सकते हो भई, स्वतंत्रता है। और डिसअग्रीमेंट की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी है, आर्टिकल 19, किताब: भारत का संविधान। एक मंकी पीपल कोक की बोतल के साथ मशक्कत कर रहे थे, और दूसरे अपने प्रिय फल केले की ताक में थे। अबे ये बोर नहीं होते केला खा कर ? और एक छोटे मंकी पीपल को देख कर बगल में बैठी जाँबाज़ आंटी हँस रही थीं तो वो चिढ़ कर उनको गुदगुदी करने लगा। इससे वो और हँसती और छोटू असमंजस में पड़ता। “अबे तुम खेलना ही नहीं चाहते हो। मैं गुदगुदी करूँगा और तुम चिढ़ो या डरो। हँसने की नहीं रखी है”, इस पर आंटी और ज़ोर से खिलखिलाएं।

Rafting in Rishikesh

झूला पार करते करते राफ़्टिंग वाले लड़का लोग की फ़ोटू निकाली, और जगह बनाते बनाते दूसरी ओर आ गई। इतना हाय तौबा मचा हुआ है कि फ़ील ही नहीं आ रही लक्ष्मण झूला वाली। अब वो क्या होती है ? अरे बचपन में आए थे तब अलग नशा था इसका। अभी सूर्यास्त होते यहीं से देखा। और दूसरी तरफ़ जा कर “नाउ व्हाट?” बोला अपने को, तो गंगा आरती की याद आयी। कोने में खड़े हो कर सोचा कि रास्ता पूछ कर निकलते हैं, तो दो पुरुषों के हँसने की आवाज़ से अपुन भी हँस गए। वजह कोई नहीं थी हँसी की, पर उन्होंने अपनी बातों में मुझे भी शामिल कर लिया। इनमें से एक पुलिस वाले सर हैं, ड्यूटी पे तैनात, दूसरे उनके मित्र हैं। मित्र साहब ज्ञान की बातों के पत्थर और चट्टान मुझ पर फेंकते हैं काफ़ी देर तक। मज़ा तो आया सुन कर, और हँसी तो फिर आती ही है:

  • मैंने भगवान् को देखा है। माँ बाप ही भगवान् हैं। 
  • साधू बातों से नहीं कर्मों से होते हैं। 
  • हम तो ब्रह्मचारी हैं, हमें x  y z  से कोई काम नहीं। 

ज़्यादा मुझे याद नहीं, क्यूँकि काफ़ी बोरिंग मामला था। पता नहीं मुझे क्यों बता रहे थे। हाँ, पर एक बात पुलिस भैया की अच्छी लगी “ब्रह्मचर्य का शादी से कोई लेना देना नहीं। स्वभाव और व्यवहार से आदमी ब्रह्मचारी होता है”। क्यों, है ना दमदार बात?  कुछ देर बाद, जब कुछ नया नहीं मिला, तो मैंने पुलिस-मित्र सर से कहा “ये सब तो ठीक है पर आपने कतई बोर कर दिया है। कुछ नया बताओ।” अहँकार परदे के पीछे से झाँका उनके, और बोले “तुम पहली इंसान मिली हो जो सच बोल दिया साफ़ साफ़”। मुझे हँसी बहुत आती है कभी कभी, तो लोग अपने हिसाब से समझ लेते हैं कुछ। ऐसे ही इन्होने जाने क्या समझा-जाना। पर अपुन ने परमार्थ मंदिर का रास्ता और रात बिताने का ठिकाना पूछ कर प्रणाम किया। पुलिस मित्र सर “अतिथि देवो भव:” में बोले मैं अरेंज कर दूंगा, तुम नंबर दे दो। फ्री हो कर कॉल करना”।

राम झूला के पास है परमार्थ मंदिर, जहाँ की गंगा आरती वर्ल्ड फ़ेमस है। राम झूला पर दुपहिया वाहन जाते हैं, तो उसके मज़े हमने भी लिए। और घाट से पहले पार्क कर, गंगा आरती के लिए चले। आरती का रैप अप हो रहा था जब मैं वहाँ पहुँची। “चलो अच्छा है, अब शांति से गंगा किनारे चिल करेंगे”, मतलब गंगा देवी से पुरानी गुफ़्तगू। परमार्थ के आँगन में ही शिव की दूसरी प्रतिमा से रूबरू हुई। कोई कह रहा था कि ये डूब गई थी फ़्लड में, और फिर से बनाई गई है। बनाई जबरजस्त है। एक दो लोगों ने अपना फ़ोन थमा दिया “हमारी फ़ोटू खींचो” बोल कर। हज़ार कोड़े लगें मुझे, ऐसी घटिया फ़ोटू खींच कर उनको फ़ोन दे देती। वो सेट अप और कम्पोज़िशन बता कर फिर मॉडलिंग करने खड़े हो जाते। और मेरे चेहरे का लुक बोले: “अबे फ़ोन से फोटू लेना नहीं आता है अपुन को, और इंसानों की फोटू लेना तो बिलकुल भी नहीं”। इस पर वो कहते “तो हम क्या बंदर बन जाएँ अब! इतनी मुश्किल से तो इवॉल्व किये हैं”। 

Shiv Murti in Rishikesh

शिव के सामने वाले मॉडल्स को कुछ देर में हटाया गया, शिव का भी क्लोज़िंग टाइम होता है भई। एक मोहतरमा ठीक शिव के सामने, मंदिर के आँगन में ध्यान में बैठी थीं। परिवार वाले बच्चों को संभालने में व्यस्त।  एक कन्या अपने बॉयफ़्रेंड से चिढ़ रही थी। (वैसे मुझे लगता है बॉयफ़्रेंड नहीं, क्रश होगा, क्यूँकि तेवर ही इतने ख़तरनाक थे लड़के के)। दूसरा कपल भोत खुश था। कुछ लोग क्लू-लेस थे।

एक दीपक गंगा मैया को समर्पित किया किसी ने, और अँधेरे में जलती लौ अपुन के भीतर तक पहुँच गई। शिव, गंगा, पहाड़ों की बाहें, और नन्हा सा दिया, नशा ही नशा ब्रो! इससे अपुन को फ़ील आया कि बस हो गया यहाँ का। एक सज्जन ने रहने की व्यवस्था कर दी, और भोजन की भी। उसके बाद अपन ने सोने की कोशिश की पर किसी न किसी कारणवश नींद टूटती रही। नई जगह, थकान, उस पर आस पास शोर था, बातचीत का। अच्छा ही हुआ क्यूँकि 5 बजते ही, हाथ मुँह धो कर मैं गंगा किनारे चली गयी। घाट के पास गली में एक लगातार चलने वला नल लगा था, वहीँ से मुँह धोया भी, पानी पिया भी। एक चाय पी कर, घाट पर बैठी रही कुछ देर, करीब दो घंटे। इस बीच ये सब हुआ:

  • गंगा की लहरें तेज़ हवा के साथ मिल कर नृत्य सा करती महसूस होती थीं। 
  • कुत्तों का झुण्ड आ कर आस पास खेलने लगा, फिर डस्टबिन वाले कोने में जा कर माल ढूंढने लगे।
  • बोटिंग काउंटर पे भाईसाब काउंटर क्लोज़ कर के रवाना हुए घर को। 
  • रौशनी होने लगी तो कबूतर लोग आ गए पास। कभी कभी तो ये लोग इतना पास आ जाते हैं कि पेट में कुछ कुछ होता है अपुन को। 
  • दो लोग सुबह पूजा करने घाट पर आए। 

अब फ़ाईनली शिव की प्रतिमा को अलविदा कहने मैं गई, तो नज़ारा उफ़ आउछ ओफ़्फ़ो था। चाँद था, सूरज की रौशनी भी थी मद्धम, और असंख्य कबूतर शिव की आरती करते थे। कुछ देर बैठ कर इस दृश्य को देखती रही, और फिर कैमरा से क्लिक किया तो धमाल हो गया।

इसके बाद एक चाय स्टॉल के पास से गुज़री तो जा कर वापस आ गई। “सर जी एक चाय देना”। मुस्कुराते हुए उन्होंने “हाँ जी” कहते हुए, चाय चढ़ा दी। चाय किसे चाहिए थी साहब, उनके रेडियो में गाना बज रहा था जो खींच ले गया “तुलसीदास अति आनंद, निरखि के मुखारविंद”। जलोटा साब भी कभी कभी मज़े ही ले जाते हैं।

जिनके पास पहली चाय पी थी, उधर गई, और उनसे पूछा कि कोई शांत जगह बताओ। अच्छा, इधर एक सर मिले जो पलवल के रहने वाले हैं, और यहाँ काम करते हैं। कैसे विकास ने बहुत कुछ बर्बाद किया है, महंगाई वगैराह की बात यहाँ पलवल वाले सर से सुनने को मिलीं। वैसे चाय वाले भाईजी लोकल हैं, पर जब वो दिल्ली गए थे काम के लिए, उन्हें मज़ा नहीं आया। उन्होंने मेरे एकांत पसंद होने को भाँपते हुए कहा “वशिष्ट गुफ़ा जाओ आप”, और बात एक ही झटके में जम गई, पता नहीं क्यों।

ऋषिकेश से बद्रीनाथ वाला रास्ता है ना, उस पर 22 किलोमीटर आगे गए हम। और, शिवपुरी क्रॉस करने के बाद वशिष्ट गुफ़ा आती है। रोड से नीचे उतरने से पहले पेट पूजा का ख़याल आया, तो ढाबे वाले साहब बोले, “मैगी और ऑमलेट है”। चक्कर ये है कि अंडा अपुन खाते नहीं, और मैगी (मैदा) से परहेज़ करते हैं। पर भूख लगी थी यार! तो, चाय के साथ मैगी खाई। सब्ज़ियाँ डाल कर मस्त बनाई थी जनाब ने। और तो और, मटर भी थी। अब देखें कि ये गुफ़ा कैसी है।

क्रमशः

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