अबे ये क्या टाइटल हुआ ब्लॉग पोस्ट का? वो भी ट्रैवल पोस्ट, ऊपर से ऐसा कुछ धमाल भी नहीं कर आए हो। हज़ारों फ़्री सोल हैं, जो नेचर के कॉल (nature’s call नहीं) अटेंड कर के इधर उधर अफ़रा तफ़री करते ही रहते हैं। तुम कौन हो बे, इतना एक्साइटेड हो कर एक चिन्दी बात का बबाल कर रहे?
तो इन सब बातों का रिस्पॉन्स इस पोस्ट की कहानी दे ही देगी, ऐसी मंगल कामना के साथ, जय फ़्री राम करते हैं। तो साहब, इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं सच्चे हैं, जिनका अपुन की जर्नी से डायरेक्ट रिश्ता है। कई किस्सों से मिल कर ये सोलो ट्रैवल/ एक्स्प्लोरेशन की कहानी पहले जी गई है अपुन के द्वारा, और अब आपके सामने हाज़िर है, एकदम टू कॉपी स्टाइल में।
फ़रवरी के आख़री हफ़्ते की शुरुआत गट फ़ीलिंग से हुई “तेरे को सोलो निकलने का है, किधर भी”, और तीन दिन अपुन के भीतर भूकंप मचा रहा इसको लेकर। फ़ाइनली एक सेलिब्रिटी सर को मैसेज किया “चलते हैं कहीं”। उनका रिस्पॉन्स देख कर ख़ुशी से नाचने ही लगी। रिस्पॉन्स था नो रिप्लाई। हम भी हिम्मत हारने वाले न थे, बैक टू बैक 150 कॉल कर दिए, “डिड नॉट कनेक्ट ” के तमाचों के बावजूद भी। दिन ख़तम, और पेट का दर्द गहराने लगा। अगले दिन, यानी 27 फ़रवरी को, कॉल का सिलसिला शुरू तो हुआ पर इस बार ट्रिप फ़ाइनल हो गई। सर ने हाँ बोला और “वापस कॉल करता हूँ” कह कर हमें मुन्तज़िर बना दिया, फिर से। खाना पीना सब गड़बड़ रहा इन दिनों। शाम तक अपुन ने अहंकार का दामन पकड़ा और सब को “गो टू हेल” वाली शुभकामना दे कर मन पक्का किया (आप भी ट्राई करना, बड़ा मज़ा आता है )।

अपना फ़ाइनल हो गया एक ही झटके में कि ऋषिकेश जाने का है। (इसके बीज कब बोए गए थे, वो कभी और बताते हैं) जो द्वंद्व शुरू हुआ वो ये था कि दुपहिया वाहन (अपुन की ऐक्टिवा) से जाया जाए या रोडवेज़ में शाही सवारी हो। इस पर विचार करते करते ही फ़ोन आया। माँ का फ़ोन आया! ऋषिकेश सुनते ही लपक के तैयार हो गई लड़की साथ चलने को। ये मेरी माँ वही स्त्री है जिसको पचास साल से हम अपने संग ले जाने के विफल प्रयास कर चुके हैं। चलो अब जैसी जब होनी हो सो होय। इससे अपुन की मुश्किल सट्ट से हल हो गई, रोडवेज़ ने भारी बहुमत से जंग जीत ली। मम्मी को पैकिंग के बारे में सलाह दे कर (जो उनको चाहिए नहीं थी) अपुन अपना 10 लीटर वाला, या स्कूल बैग, पैक करने लगे, और मस्त चाँद की फ़ोटू खींची ट्राइपॉड लगा कर (हलके में ले रहे क्या आप?)। चाँद के साथ रोमांस ख़तम भी न हुआ था, कि माता ने फ़ोन खटका के “आई क्विट” बोल दिया। अब हम फिर से अकेले ही हो गए। ये मोमेंट नोट करने वाला है, क्यूँकि तीन दिन से जो भीतर मथ रहा था, उसमें “सोलो” शब्द बोल्ड भी था और हाइलाइटेड भी।

निष्कर्ष पूरे क़िस्से का: अपुन अकेले जाएगा। ऋषिकेश। एक्टिवा पर। समय, जब भी रेडी हो जाओ।
और हम – यानी मैं, मेरा नन्ना मुन्ना बैग, कैमरा बैग, ऐक्टिवा, 20 साल पुराना MI का टूटा फ़ोन, बोट के हाई बेस ईयरफ़ोन, और गाना ऐप- सब तैयार थे सुबह के 3.05 पर। सबसे पहले टैंक फ़ुल। और दिल्ली से मेरठ वाले हाइवे की ओर कूच (मतलब व्रूम व्रूम विद डिस्टेंस गेन)। पता है कौन सा गाना बज रहा था ? वही मेंडेटरी फ़्री सोल सॉन्ग। गेस करने के नंबर मिलेंगे!
2 thoughts on “अनंत की पुकार | क़िस्सा नंबर 1: सोलो बोल्ड है!”
Waah-2. Aage? ye batao. Number nahi chahiye number bahut hain hamare pass. Almari mein band Aage kya? Nahi pata bas. Ye batao!
आगे की कहानी ये रही : https://www.bawraybanjaray.com/anant-ki-pukaar-part-2/
और थोड़े नंबर हमसे भी ले लो सर, ऐसे ही गिव अप कर दिए आप तो. 🙂