Bawray Banjaray On Trek to Srikhand Mahadev

Shrikhand Mahadev Yatra — दर्शन, दर्पण, अर्पण, सम्मोहन, सशक्तिकरण और समर्पण!

कोई श्रद्धा से, कोई शौक से, कोई सनक में या पागलपन में – हर साल हज़ारों लोग अपने -अपने मकसद और अरमान लिए श्रीखंड महादेव की यात्रा के लिए आते हैं. कुछ दर्शन कर पाते हैं, कुछ रह जाते हैं. 2018 में भी कुछ ऐसा ही हुआ – करीब 12 से 13 हज़ार लोग श्रीखंड दर्शन करने पहुँचे, लेकिन सिर्फ़ दो से ढ़ाई हज़ार लोगों को ही बाबा के दर्शन मिले. हम बहुत ख़ुश-नसीब रहे कि हमें ऊपर मौसम बेहतरीन मिला। फूल जैसी यात्रा रही और दर्शन अलौकिक! श्रीखंड महादेव ट्रैक आसान तो नहीं है पर नामुमकिन भी नहीं ! परिस्थितियाँ आपको मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से चैलेंज करते हैं। रास्ता हर कदम पर आप से सवाल करता है -जैसे आपसे वहाँ आने का कारण पूछता हो, आपकी परीक्षा लेता है। पर नेचर कहीं भी कोई कसर नहीं छोड़ता आपका साथ देने में – आपका हौसला बढ़ाता है, आपको नए नज़ारे दिखाता है। आखिर में सब आप पर डिपेंड करता है की आप क्या सोच कर चलते हैं और कैसे आगे बढ़ते हैं। अगर बढ़ते रहेंगे तो पक्का पहुँचेंगे।
निकलने से पहले हमको भी कोई आइडिया नहीं था कि क्या होगा, कैसे होगा, पहुँचेंगे या नहीं। पर जब आप ऊपर पहुंचते हैं तो पता लगता है की कुछ भी मायने नहीं रखता, सिवाए इसके की आपको मुश्किलों को गिनने की बजाय बस चलते रहना होता है। यहाँ पहुँचकर यही हमने जाना और शायद यही रहा हमारा –

1. दर्शन – जब यात्रा ख़त्म हो चुकी थी, जहाँ से टेंट उठ चुके थे अब!

View from shrikhand mahadev top in kullu, himachal

तो ये है श्री खण्ड महादेव जी का नज़ारा – सफ़र के आख़िरी मोड़ से. यहाँ से आप पहली बार आमने-सामने दर्शन करते हैं उस खण्ड का जो शिव की इस घाटी में एक ऊँची छोटी पर सदियों से स्थिर पड़ा हुआ है। घाटियों, झरनों, नालों, पत्थर, पेड़, पहाड़ों, जंगल, झाड़ों से होते हुए कुछ 36 किलोमीटर चलकर आप यहां पहुंचते हैं। इसी पॉइंट पर आपकी यात्रा ख़त्म भी होती है और शुरू भी – ख़त्म इसलिए कि यहाँ पहुँचकर आपके सारे पूर्वाग्रह ढह से जाते हैं. मतलब कि आपको लगेगा जैसे आप यहाँ क्यों ही आए हो! मानो जो सोच लेकर आए थे वो कहीं खो सी गई. पर फिर यहीं से शुरुआत होती है एक सिलसिले की – नए जवाब ढूंढने की ! मानो पहाड़ों ने अपनी गोद में बिठाया हो और पता नहीं कहाँ से थोड़ा समय निकालकर हमें दे दिया हो! आपके मन में चल रही उथल- पुथल एकदम शांत हो जाती है.

2. दर्पण – रास्ता, रास्ता है चलने के लिए

jaon Village on Shrikhand mahadev trek

श्री खण्ड महादेव की यात्रा कहने के लिए जौं गाँव से शुरू हो जाती है. यहाँ आकार सड़क ख़त्म हो जाती है और वहाँ से फिर आपको 4 किलोमीटर पैदल चलना होता है सिंहगाड़ तक जो की आख़िरी गांव है। उससे कुछ 3 किलोमीटर आगे है बरहाटी नाला – जो कुरपन खड (धारा) के किनारे पर बसा एक छोटा सा ठिकाना है. बरहाटी नाला से आगे आपको बिजली की सुविधा नहीं मिलेगी। यहीं से शुरू होती है आपकी असली श्री खण्ड यात्रा -आप चढ़ाई शुरू करते हैं। जैसे-जैसे आप कुरपन खड (धारा) को नीचे छोड़ते हुए चढ़ते हैं, जंगल गहरा और ज्यादा शांत होता जाता है। पेड़-पौधे आपको घेर लेते हैं, मोबाइल नेटवर्क गुल और सारी दुनिया पीछे रह जाती है. हिंदी भाषा में वो कहावत है ना ‘जैसे को तैसा’ – जैसे आप खुद होते हैं आपको अपनी वैसे ही परछाई दूसरों में देखने को मिलती है! चाहे दोस्तों की बात कीजिए या किसी और की। वैसे कॉलरिज साहब की मानें तो नेचर भी आपको वैसा ही दिखता-दिखाता है जैसा आप खुद फ़ील कर रहे होते हैं – आप दुखी हैं तो सारा संसार आपको दुखी लगता है और अगर खुश हैं तो सब मुस्कुराता हुआ। जिस सहूलियत में आपने अपने शरीर और दिमाग को रखा होता है, ये ट्रैक भी बिल्कुक वैसा ही नज़र आता है – आईने जैसा, आपको आपकी तस्वीर दिखाता हुआ।

3. अर्पण – आपके कदम आसमान देखते हैं…

bawray banjaray homestay in baga sarahan

अपने बागा सराहन वाले होम स्टे से हम लोग दोपहर 2 बजे निकले और रास्ते भर बारिश में भीगते-भीगते, करीब 10 बजे पहुंचे बरहाटी नाला. बरहाटी नाला बाबा सौरव गिरी का अड्डा है। कुछ 12 किलोमीटर चले, रास्ता इतना मुश्किल नहीं था पर लगातार हो रही बारिश ने उसको मुश्किल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। रास्ते में कीचड़ और पत्थरों पर काई जमी थी, तो फिसलने के पूरे-पुरे चांस लगातार बने हुए थे। रेन-कोट पहने हुए थे पर हवा में इतनी नमी थी कि बैग, बैग में सामान,जूते-कपड़े सब भीग चुके थे। रात हो गई थी और थोड़ी ठंड भी। पहुंचे तो पास चूल्हे में आग जल रही थी, फटाफट जाकर नज़दीक बैठ गए और कपड़े – लत्ते भी बैग से निकालकर आसपास फ़ैला दिए। अब अगली सुबह निकलना था काली घाटी के लिए जो कि श्रीखण्ड महादेव यात्रा का दूसरा पड़ाव है, बरहाटी नाला से करीब 8 किलोमीटर। बीच में थाचरू भी पॉइंट हैं, पर हम को सीधा जाना था काली जाती टॉप, जहां रुकने का सीन था।
बारिश अभी भी तेज हो रही थी. आग के पास से हटने का मतलब ही नहीं बन रहा था। बाकी कुछ लोग बाबा जी के साथ अंदर कमरे में बैठे थे, जहां पूजा स्थल है। बातें चल रही थी, साथ में चाय और चिल्लम। कुछ लोग किचन में सबके लिए खाना तैयार करने में लगे हुए थे और बाक़ी अगले दिन की तैयारी में सामान पैक कर रहे थे. इनमें से काफी ऐसे लोग हैं जो हर साल यात्रा के समय यहां आते हैं, दस – पंद्रह दिन रुकते हैं और आने वाले यात्रियों के लिए खाना बनाते हैं, खिलाते हैं, उनके रुकने के साथ-साथ, गरम पानी तक का इंतज़ाम करते हैं। फिर यात्रा ख़त्म होने के बाद सौरव गिरी बाबा जी के साथ जाकर दर्शन करते हैं श्रीखण्ड महादेव जी के।

bawray banjaray during shrikhand mahadev trek

रात, बारिश, बातें, आग और आसपास कुछ बेहतरीन लोग – मतलब गज़ब ही माहौल बना हुआ था। पर अगले दिन चढ़ना था तो कुछ देर आग के आगे सिक कर हमने फ़टाफ़ट खाना-पीना खाया और बिस्तर पकड़ लिए। सुबह होश आया तो पाया कि कुछ बदला ही नहीं है। जैसी खड़ी बारिश रात में हो रही थी, अब भी वही सीन था। रत्ती भर भी कम नहीं हुई थी और रुकने के कोई आसार दिख भी नहीं रहे थे। फिर क्या था, बस बारिश रुकने का इंतज़ार और आग के सामने बैठकर इधर-उधर के क़िस्से.
दोपहर 2 बजे करीब बारिश मंदी हुई. हम आगे बढ़े। अब पहुँचना था काली घाटी टॉप पर जो कि कुछ 8 किलोमीटर है बरहाटी नाला से। शुरुआत के 5 किलोमीटर सिर्फ घना जंगल है और आखिरी के 3 किलोमीटर जड़ी-बूटियों से लदे हुए पहाड़। पूरे रास्ते आपके कदम सिर्फ आसमान की ओर देखते हुए आगे बढ़ते हैं, ढलान का नामो-निशान नहीं मिलता। खाने-पीने का सामान हमारे साथ था और बाक़ी लोग भी थोड़ा आगे-पीछे, पर साथ ही चल रहे थे। पहले कुरपन खड, जो कि अब तक हमारे दाएं और बह रही थी, पार किया और फिर जंगल से होते हुए चढ़ना शुरू। चलते-चलते शाम हो चली थी। बारिश रुक चुकी थी, बादल छंटे तो एकदम साफ़ नीला आसमान दिखा, नीचे पूरी घाटी नज़र आ रही थी और जहां से चल कर हम आए थे वह भी। सन-सेट जबर था पर क्योंकि अभी तक आधा रास्ता भी पार नहीं हुआ था तो तिरछी नज़रों से, मन मार कर ढलते सूरज को देखते हुए हम आगे बढ़ते रहे।

An evening view of shrikhand mahadev valley

थाचरू तक पहुंचे तो सूरज छुप चुका था और अंधेरा होने लगा था। हमे सबसे पहले अब जंगल पार करना था. टोर्च जलाकर हम धीरे- धीरे चढ़ते रहे। रात कुछ 8 बजे तक हमने जंगल पार किया तो इलाका बदला — ट्रेक मिट्टी की जगह पत्थर का हो चुका था, पेड़ ख़त्म हो गए थे और चारों तरफ सिर्फ झाड़ियाँ थी। अब हमें चढ़ना था यात्रा की सबसे मुश्किल चढ़ाई — डंडा धार। ये काली घाटी तक पहुंचने के आख़िरी 3 किलोमीटर हैं और एकदम खड़े। 60 डिग्री से ज्यादा की खड़ी चढ़ाई और ट्रेल एकदम भुर-भुरा — मतलब कि आप फिसले तो सीधा नीचे। यह भी हमारा लक ही कहिए कि अंधेरा हो गया था और हमको ये चढ़ाई नहीं दिख रही थी। टॉर्च की रोशनी में सिर्फ आगे के दो कदम दिख रहे थे और हम सर नीचे करके चले जा रहे थे। डंडा धार चढ़ने से पहले हमने एक स्टॉप और लिया। थके हुए थे तो पत्थरों पर ही फैल गए। कुछ पल बैठे ही थे कि सामने वाले पहाड़ की छोटी के पीछे से निकलता है चाँद। पल में सारी थकान ग़ायब। वैसे तारों की एक चादर अगर आसमान में टंगी थी तो ऐसी ही सितारों की एक चादर पहाड़ों में फैली हुई दिख रही थी – वैली का हर एक घर एक तारे की तरह चमक रहा था।
हम आगे चले और इसबार सीधे टेंट में ही जाकर रुके — क़रीब 10 बजे। खा पीकर अपने बिस्तर में सेट हो गए। बाहर का नज़ारा क्या है, कैसा है — इस वक़्त हमें इससे कोई मतलब नहीं था. हम बस सो लिए – सबसे प्यारी नींद…

4. सम्मोहन – और आप मोह लिए जाते हैं…

kali ghati top during shrikhand mahadev trek

काली घाटी पर सुबह जब आँख खुली और बाहर निकले तो पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया। धुंध और पगलाए हुए बादलों के अलावा कुछ और दिख ही नहीं दिख रहा था। सब ओझल था – आसपास के पेड़- पौधे, पहाड़, आसमान, सूरज, चिड़ियाँ और बाक़ी कुछ भी धुंध और बादलों में गायब हो रखे थे; हमें पता था कि सब आसपास ही हैं पर खुली आँखों से देख पाना मुश्किल था। धरती ने धुंध की चादर ओढ़ रखी थी और नेचर का ज़र्रा- ज़र्रा खुद को सबकी नज़रों से छुपाए बैठा था। यकीन कर पाना मुश्किल था कि प्रकृति ऐसे भी खेलती है – शायद यही सम्मोहन था। सर रबीन्द्रनाथ की एक कविता की एक लाइन याद आई —

“धुंध, मानो धरती की चाहत सी है, वह धरती को सूर्य से अलग करती है, जिसके लिए धरती हमेशा मरती है।”

गज़ब का समा था जो नशे की तरह चढ़ता ही जा रहा था। हमने पूरा आनंद लिया; आराम से बैठे और काफ़ी देर ताक़तें रहे आते जाते बादलों और धुंध को। पिछले दिन की ज़बरदस्त चढाई के बाद और भी ज्यादा स्वाद आ रहा था। अगला स्टॉप अब पार्वती बगीचा था जो की काली घाटी से कुछ 12 किलोमीटर है। आगे का रास्ता पिछले के मुकाबले बहुत बेहतर है तो अब चलने में मज़ा आने वाला था। कुछ जगहों पर चढ़ाई को छोड़कर वहाँ से आगे का रास्ता ज़िग-ज़ैग की तरह है – ऊपर जाता है, नीचे आता है और फिर ऊपर, फिर नीचे और ऐसे ही चलता जाता है। काफी छोटे-बड़े झरने मिलते हैं रास्ते में। ट्रैकिंग के लिए बेहतरीन मौसम था तो कुछ देर बैठने के बाद हमने फटाफट अपना नाश्ता किया और निकल लिए पार्वती बगीचे।

Greenery during Shrikhand Mahadev Trek

मानसून में ट्रैकिंग करना थोड़ा मुश्किल और खतरनाक हो सकता है, पर मज़ेदार बहुत होता है! आपको लाइफ दिखती है — एकदम ग्रीन और फ्रेश, हर एक पत्ता ऐसा दिखता है जैसे कि बस अभी उगा हो और पूरी मस्ती में जी रहा हो। पत्तों पर जमी ओस की बूँदें उनमे ताज़गी भर रही होती है और बदले में ये पत्ते हवा में ख़ुशी बिखेर रहे होते हैं. हर दस-बीस कदम पर आपको कहीं न कहीं से पानी रिसता हुआ मिल जाएगा — पिएंगे तो कहेंगे कि अमृत ऐसा ही होता होगा! चारों और बादलों का बाज़ार लगा होता है। ऊंचाई से गिरते झरने, हवा में इंद्रधनुष बना रहे होते हैं। दुनिया सिंपल और रंगीन — दोनों एक साथ दिखती है। काली घाटी से निकलते ही, कुछ 1 किलोमीटर सीधे नीचे उतरना होता है। फिर बस चलते जाओ नालों को पार करते हुए। रास्ते में भीम तलाई आता है जो रुकने का एक और अड्डा है. पर यह अड्डा सिर्फ यात्रा के समय ही चालू रहता है। रास्ते में एक दो जगहों पर आपको इक्का-दुक्का टैंट दिखेंगे। फ़िर आता है भीम द्वारी. इसे आप पार्वती बगीचे का एंट्री पॉइंट भी कह सकते हैं। यहां आपकी मुलाक़ात होती है फेमस पारवती झरने और उससे निकलते नाले से जिसको बारिश के समय पार करना बेहद ख़तरनाक होता है। बारिश के समय पानी भरता है तो फिर बस यह नाला बोलता है; आपकी यात्रा यहीं ख़त्म करवा सकता है! बारिश होने से पहले नाले को पार करने के चक्कर में हम थोड़ा जल्दी चल रहे थे और रास्ता थोड़ा आसान भी था। सुबह मौसम भी मज़ेदार हो रहा था। सूरज कुछ ऊपर चढ़ा तो मौसम साफ़ हुआ – बादल छंटे और आसपास के पहाड़ और वैली नज़र आई। पर पहाड़ों में मौसम बदलते समय नहीं लगता और ख़ासकर 2 बजे के बाद तो पक्का है कि मौसम कुछ तो करवट बदलेगा। पार्वती नाले के बाद, बगीचे तक पहुँचने से पहले कुछ एक-डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढाई आती है. पर वो आप धीरे-धीरे, आराम से पार कर सकते हैं। इसके बाद फ़िर अगला टॉप होता है पार्वती बगीचा — यात्रा का आख़िरी बेस कैंप।

Parvati bagicha on shrikhand mahadev trek

दोपहर के करीब 3 बजे हम पहुँच गए पार्वती बगीचा – सफर का आख़िरी बेस कैंप। टेंट तैयार था और खाना भी। हमने पहले अपना सामान टेंट में सेट किया और फिर खा-पीकर खुद को। अब हमारे पास काफी समय था; आराम करने का, सोने का, बातें और बकचोदी करने का। दिल्ली के दो भाई और मिल गए जो उसी टेंट में रुके हुए थे। उनको भी अगले दिन श्रीखंड महादेव के लिए चढ़ना था, साथ बैठे बातें मारते-मारते साथ निकलने का प्लान बन गया। कुछ देर टेंट में पड़े रहने के बाद शाम सी हुई तो बाहर निकले। बाहर निकल कर बैठे और जब बैठे तो समझ आया की आख़िर क्यों पार्वती जी ने कभी इस जगह को अपना बगीचा रखा होगा। पूरी वैली घास का कारपेट बानी दिख रही थी. बस इसे रंग बिरंगे फूलों से सजाई गई हो। चारों और से आती झरनों और नालों के पानी की आवाज़ें और हवा में घुली हुई उनके मीठे पानी की मिठास — यही सब था वहां की हवा में जो मंत्रमुग्ध कर रहा था। बैठे- बैठे सोच रहे थे कि बादल छंटे तो सन-सेट का नज़ारा दिखे पर जो अभी तक पूरी यात्रा पर नहीं हुआ था वो ये बादल भला अब कैसे होने देते। बादलों ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा कहीं भी। ऐसी शांति थी जो अंदर के ख़ालीपन को टटोलती जा रही थी। ऐसी में आपके मन में वे ख़याल आते है जिन्हे फिर से जी कर आप समझते हैं महत्व – काम का, लोगों का, बातों का, रिश्तों का और अपना। हम भी पड़े-पड़े ख्यालों में खोए हुए थे अब तो। नज़रें नीचे वैली की ओर पड़ी तो यही सोचा कि जब इतना चल कर आ गए हैं तो आगे भी ज़रुर चल ही लेंगे। ये बात शायद हम खुद से नहीं बल्कि खुद प्रकृति हमसे कह रही थी। रात हो गयी थी, मौसम साफ़ था और पूरा आसमान अब टिमटिमाते तारों से भर गया था। पार्वती बगीचे से श्रीखंड महादेव चोटी कुछ 6-7 किलोमीटर है। बीच में न तो कोई रुकने की जगह है और न ही पीने के पानी का कोई जुगाड़। आप अपना खाना-पीना खुद लेकर चलते हैं। पर चलने का असली मज़ा अब आता है — ख़ासकर ट्रैक के आख़िर हिस्से में जो कि रोमांचक, खतरनाक और विशुद्ध एडवेंचर है। चैलेंज बस ये होता है कि श्रीखंड टॉप तक जाकर आपको उसी दिन वापस भी आना होता है। सुबह जितनी जल्दी निकल सकें उतना बेहतर। शाम तक और लोग भी पार्वती बगीचे पहुँच चुके थे। प्लान ये बना कि जल्दी सो कर आधी रात में निकला जाए ताकि सूर्योदय टॉप से देख पाएं। किया ये ही गया — रात 1 बजे टेंट में हलचल हुई. आँख खुली तो देखा कुछ लोग पहले से जगे हुए थे। पर सब शांत बैठे थे – भोले की आराधना चल रही थी, बाहर निकलने के आसार शून्य थे क्योंकि मूसलाधार बारिश का अंदाज़ा टेंट पर पड़ती बूंदों से हो गया था। प्लान में बदलाव हुआ – अब सुबह जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी निकलने पर बात आई। वैसे फिर वापस नींद नहीं आती पर कम्बल की कोज़ीनेस और बारिश के बूंदो की टप-तप में हम थोड़ी देर में फिर चित्त हो गए। 3:30 बजे क़रीब आँख खुली तो सब शांत था। फ़टाफ़ट बाहर निकले और फ्रेश-व्रेश होकर तैयार हो लिए। बाहर चाँद की मद्धम सी रोशनी नीचे वैली पर फैले सफ़ेद बादलों की चादर पर पड़ रही थी. दूर कहीं बादलों में बिजली हर सेकंड-दो सेकंड पर लगातार चमक रही थी। नीचे कहीं बारिश हो रही थी पर ऊपर मौसम साफ़ हो चुका था. हम फ़टाफ़ट, देर किए बिना 4 बजे तक निकल लिए। रात की रोशनी में पत्थरों, नालों और सोते हुए फूलों के बीच से कूदते-फांदते हम आगे बढ़ रहे थे। नयन सरोवर से कुछ दूर ही थे की आँखों को रौशनी में नयापन सा लगा। सूर्योदय अपने रस्ते था और हम अपने।

A magical morning view during shrikhand mahadev yatra

नज़ारा कुछ ऐसा था: बादल नीचे रह चुके थे, सूरज कहीं पहाड़ों के पीछे से जाग रहा था। फिर दूर कहीं सुबह की पहली रोशनी दिखी बादलों में, जो धीरे-धीरे बादलों को ख़ुशी से लाल करती हुई हमारी तरफ बढ़ी रही थी। सुबह हो रही थी! पहाड़ों के चोटियों की आँख खुल रही थी। हवा सर्द थी पर उसमे सुबह की ताज़गी, ख़ुशबू बनकर दौड़ रही थी. हम मदहोश हो रहे थे। सुबह की इसी मदहोशी में हम नयन सरोवर पहुंचे।

5. समर्पण – जहाँ से चीज़ें समझ आने लगें, शुरुआत वहीँ से…

श्री खण्ड महादेव ट्रेक की एक मज़ेदार बात यह है कि आपको चलने का रास्ता ढूंढने की जरुरत नहीं पड़ती; रास्ता खुद आपकी राह देखता है,आपको बस चलते रहना होता है। सफर की शुरुआत से लेकर ऊपर चोटी तक आपको पेड़ों और पत्थरों पर लाल और पीले रंग के निशान दिखते है. इन निशानों को सही से फॉलो करके आप बिना रास्ता भटके ऊपर पहुँच सकते हैं। हमारा अब तक का सफर काफी सही रहा था; रास्ता- वास्ता तो हम कहीं नहीं भटके। पार्वती बगीचे से नयन सरोवर तक भी ऐसा होने का मतलब तो नहीं बनता था पर यहां हम थोड़ा अटक गए – सुबह की कम रौशनी में पत्थरों के बीच निशान ढूंढते हुए हम धीरे- धीरे चल तो रहे थे पर एक पॉइंट पर आकर निशान गायब हो गए। रात को बारिश की वजह से जगह-जगह लैंड स्लाइड हुए थे जिससे निशान वाले पत्थर नीचे दब गए और रास्ता गायब हो गया था। जिस तरफ हमको बढ़ना था वो दिशा तो हमको पता थी पर चलना कहाँ से है वो नहीं समझ आ रहा था। थोड़ा ऊपर- नीचे, दाएं- बाएं होते हुए हम बड़े-बड़े बोल्डर पर से चढ़ते-उतरते हम नयन सरोवर पहुँच तो गए, बस थोड़ा टाइम लग गया।

nayan sarovar during shrikhand mahadev trek

सुबह हो गई थी और हम नयन सरोवर पर थे। यहां से अब रास्ता लेफ्ट की और मुड़ता है। आप सरोवर से खड़े होकर जब निशानों को फॉलो करते हुए अपनी मुंडी घुमाते हैं तो रास्ता आपको ऊपर की ओर जाता दिखाई देता हैं। आपके ठीक सामने एक ऊँची पहाड़ी दिखती है जिस पर आपको चढ़ना होता है। देख कर एक बार तो फटती है और ऊंचाई देखकर मन कहता है कि शायद यही आख़री चढ़ाई है. ये चढ़कर शायद श्री खण्ड महादेव दिख जाएं। पर ऐसा होता नहीं। चोटी तक का रास्ता मुश्किल से 2 किलोमीटर भी नहीं होगा पर ये रास्ता आपकी परीक्षा लेता है। ट्रेक के नाम पर बस बड़े-बड़े बोल्डर फैले दिखते हैं। आगे चलना चैलेंजिंग और खतरनाक होता है। पर ट्रैकिंग का एक ही मूल- मंत्र है – रुक रूककर ही सही, बस चलते रहना है. अगर आप इसे फॉलो करें तो टॉप भी आ जाता है। टॉप से नज़ारा अलोकिक है – आपको दोनों साइड वैली दिखती हैं और उन पर बादलों की मख़मली रज़ाई। बर्फीली हवा के थपेड़े आपका स्वागत करते हैं। हवा में ऑक्सीजन कम हो जाती है, सांस लेने में थोड़ी कठिनाई हो सकती है पर यहां कुछ देर रूककर नज़ारे का लुत्फ़ लेना तो बनता है।

श्री खंड टॉप के लिए जो आख़िरी चढ़ाई है ना वो जादुई और मायावी है। यहाँ का रास्ता असाधारण है और दुनिया यहाँ से अलौकिक दिखती है। रास्ते का मिजाज़ एक है पर नज़ारा पल- पल बदलता है। रास्ता आपको मंत्रमुग्ध करता है, कहीं आपको लगेगा कि अब इससे आगे चलना नहीं हो पाएगा तो दूसरे ही पल आप उड़ते हैं। इस चढ़ाई का अपना मिथिहास भी है। इसे भीम की सीढ़ी कहा जाता है — सीढ़ी इसलिए क्योंकि सही में अब चलने के लिए रास्ता नहीं होता, बस बहुत बड़े-बड़े पत्थर मिलते हैं जिन पर से आपको चढ़ना होता है। माना जाता है कि ये पत्थर भीम ने ऊपर से फेंके थे ताकि श्री खण्ड महादेव तक पहुंचना इतना आसान न हो। इन पत्थरों पर आपको बर्फ के कटाव से बने निशान दिखते हैं — लोकल लोगों का कहना है कि ये पांडवों द्वारा लिखी गयी लिपि है जिसको अभी तक कोई ना तो पढ़ पाया है और ना ही समझ पाया है। कहानियाँ जो भी हों पर असलियत यही है कि इन पत्थरों पर से चलना कोई आसान खेल नहीं है। काफी जगह इतनी संकरी और ख़तरनाक चढ़ाई है कि आपकी छोटी सी ग़लती जान पर भारी पड़ सकती है। आपको यहां चलना कम, चढ़ना ज्यादा होता है। ये खतरनाक तो है पर अगर आप थोड़ा ध्यान से चलें तो रास्ता रोमांचक बहुत है। एक तो आपकी पहले से लगी होती है ऊपर से ये रास्ता आपकी मारता है। हर एक स्टेप पर आपको चैलेंज करता है, आपसे सवाल पूछता है।

Shrikhand Mahdev top as seen from the last turn of the trek

प्रकृति का असली रोमैन्स आपको अब दिखता है। सारी दुनिया नीचे रह चुकी होती है और चलते हुए अब मस्त 360 डिग्री व्यू आता है। चारों साइड बादलों की सफ़ेद परत दिखती किस मख़मालि फर्श के माफिक। सिर्फ ऊँचे-ऊंचे पहाड़ों की चोटियां इन बादलों से ऊपर झांकती हुई दिखती हैं। यात्रा के ख़त्म होने का यकीन आपको तभी होता है जब सफर के आख़िरी मोड़ से आप पहली बार श्री खण्ड के दर्शन करते हैं। कभी- कभी तेज़ हवा बादलों को साथ उड़ा ले जाती है तो नीचे का नज़ारा साफ़ दिखता है – नीचे पूरी वैली हरे रंग में नहाई हुई दिखती है और पहाड़ों की चोटियों से नीचे गिरते झरने दूर से मोतियों की माला लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे कि किसी ने पहाड़ों की हरियाली में चार चाँद लगाने के लिए उनपर मोतियों की माला से सजावट की हो। प्रकृति जीवित दिखती है और सभी नज़ारे इसकी जादूगरी। सदियों से सहेजी गई कहानियां हवाओं के साथ आपको कानों में पड़ती हैं. समझ आता है कि प्रकृति के समीप समर्पण ही सशक्तिकरण है।

दर्शन – दर्पण – अर्पण – सम्मोहन – सशक्तिकरण – समर्पण

कुछ ऐसी रही हमारी श्री खण्ड यात्रा. जैसा हमने अनुभव किया, ठीक वैसा ही आप लोगों के साथ शेयर करने की कोशिश की। उम्मीद है कि आप लोगों को भी पढ़ कर मज़ा आया होगा – ज़्यादा नहीं तो थोड़ा ही सही। थोड़े और मज़े के लिए हमने श्रीखंड यात्रा की वीडियो और फ़ोटो को मिलाकर एक छोटी सी वीडियो तैयार की है जो आप लोगों से यहाँ शेयर कर रहे हैं।