यह किस्सा पुराना है, मलाणा जितना तो नहीं, पर हाँ, शुरुआत की बात है! किस्से, कहानियों और कविताओं के साथ, इस बार हमारा नया सफ़र शुरू हुआ था पार्वती वैली में बसे मलाणा गाँव के लिए. मलाणा का नाम तो आप सब ने सुना ही होगा. अपने अलग समाज और संस्कृति के साथ, मलाणा मुख्यतः यहाँ पैदा होने और की जाने वाली भांग की फसल के लिए विश्व विख्यात है. यहाँ का माल (हैश-क्रीम) दुनिया में सबसे बेहतरीन माना जाता है. हालाँकि, हिमाचल के कुल्लू डिस्ट्रिक्ट में होते हुए भी, इस गाँव के ताने बाने बाकी गावों से बिल्कुल जुदा हैं.
इस गांव के बारे में लोगों की बातों और किस्सों के चलते हमारा यहाँ जाने का सीन बना था. दिल्ली से भुंतर और वहाँ से कसोल की बस पकड़कर पहुंच गए पार्वती घाटी। मणिकरण की ओर जाने वाली सड़क पर, कसोल से कुछ 6 किलोमीटर पहले, जरी गाँव से एक सड़क बाएं मुड़ती है. भुंतर से कसोल आते समय, जरी के पास Malana Hydro Power Plant आता है. यहां से एक पतली सी सड़क निकलती दिखेगी, उस पर चलते जाओ, आप मलाणा पहुँच जाओगे. हाइड्रो पावर प्लांट पहुंचकर आगे जाने के लिए, पहले तो हमने शेयरिंग गाड़ी/टैक्सी का इंतज़ार किया. कुछ देर रुकने के बाद सोचा कि पैदल ही चलते हैं, पीछे से कोई गाड़ी आती तो बैठ लेंगे, और हम निकल लिए. जरी से 18 किलोमटर बाद आता है मलाणा का गेट!
मलाणा जाने वाली सड़क है ही इतनी खूबसूरत कि आपका रुकने का मन ही नहीं करेगा. हम भी चले जा रहे थे, पर तब तक, जब तक सूरज सर नहीं चढ़ा था. धूप बढ़ते ही हमारे तोते उड़ने लगे. रुकते-चलते हम आगे बढ़ रहे थे कि अपने को पीछे से गाडी की आवाज़ सुनाई पड़ती है. हमने गाड़ी वाले भाई जी को रुकने के लिए हाथ दिया, और पैसों की बात करके गाड़ी में बैठ गए. आधे घंटे में हम मलाणा गांव की एंट्री गेट पर थे. मलाणा गाँव मेन रोड से आज तक कटा है. माने गाँव तक सड़क नहीं है. 45 मिनट का ट्रेक है दुनिया वालों के लिए, गाँव के लोगों के लिए रोज़ का रास्ता.
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मलाणा गांव में पहुंचने के लिए आपको ट्रेक करना पड़ता है. 2-3 किलोमीटर की बात है. पर यह दो- तीन किलोमीटर आपके पसीने छुड़ाने के लिए काफी है. हमने जितना एक्सपेक्ट नहीं किया था, हमारी उस समय की कैपेसिटी के हिसाब से ये ट्रेक ज़्यादा मुश्किल निकला था. फिर हमारी लगाने में रही सही कसर धूप ने पूरी कर दी. हाँफते हाँफते हम गाँव के मुहाने तक पहुँच गए. एक “कैफ़े” दिखा, तो सोचा कि थोड़ा सुस्ता लेते हैं. यहाँ बैठे तो अपने को बकचोदी का मौका मिल गया. कैफ़े वाले भाई जी ने चिलम ऑफर कर दी. वहाँ मलाणा का एक भाई और बैठा था साथ में. अब ये एक्सपीरियंस कैसे जाने देते. मलाणा वाला भाई बैठा तो साथ, साथ चिलम भी लगाई, पर अलग साफी से पी. साथ बैठ कर भी भाई दूरी पर था. फिर बातों बातों में उसने बताया कि मलाणा के लोग खुद कोई होमस्टे या कैफ़े नहीं खोल सकते. उनके हिसाब से ये काम उनके लिए नहीं है. हमको धीरे- धीरे बात समझ आई. पर वहीं बैठे -बैठे हमको मलाणा का ट्रेलर देखने को मिल गया.
पुण्डरीक ऋषि किनारे बसा ये गाँव आज भी बार्टर सिस्टम पर काम चलाता है!
कुछ घंटो में इतनी बातें हो गई थी कि मलाणा वाला भाई शहरी दुनिया के किस्से सुनकर फुल ऑन चिल्ल था और बदले में हमें किस्से सुना रहा था. बातों-बातों में उसने पूछा कि आज तो आप लोग यहीं रुक रहे हैं न? हम लोग मलाणा वाले भाई के साथ हो लिए. कुछ दस मिनट में हम मलाणा पहुंच गए और भाई ने हमें एक गेस्ट हाउस पहुंचा दिया. शाम हो ही गयी थी! चढ़ाई, चाय और चिलम – मलाणा में हमारा स्वागत शाम तक चलता रहा. फिर हमने खाना खाया – पेल कर! इतना कि सीधा बिस्तर में फ़ैल गए. फिर सुबह हुई और हम निकले गाँव देखने. अपने को वहां दो मलाणा देखने को मिले —
न्यू मलाणा – पुरानी मान्यताओं, कहावतों और किस्से-कहानियों से हटकर, मलाणा की एक नई शक्ल देखने को मिली अपने को। गांव की तफरी मारते समय नज़रें घुमाई तो डिश-एंटीने दिखे. गांव में स्कूल, बैंक और डेली यूसेज की चीज़ों के लिए दुकानें हैं. अपनी उम्र के लोंडो के हाथ में स्मार्टफोन भी दिख ही गए. जो तस्वीर हम बना कर चले थे, वैसा तो नहीं था मलाणा. अपनी पहचान, अपने इतिहास और संस्कृति को बचाए रखने की जद्दोजहद में नई- दुनिया के साथ कदम मिलाने को तैयार खड़ा दिखा हमको मलाणा. इसका ट्रेलर हम कैफ़े पर मिले भाई जी से मिलकर देख ही चुके थे.
ओल्ड मलाणा — मान्यताओं के हिसाब से गांव की स्थापना जमदाग्नि ऋषि ने थी. इसका जिक्र गांव के बड़े- बूढ़ों की बातों में सुनने को मिलेगा. मलाणा गाँव का अपना अलग जुडिशियल सिस्टम भी है, जिसका अमल यहां के लोग करते हैं. एक चीज़ की छाप लोगों पर बहुत गहरी दिखी — इनकी मान्यताओं पर इनके विश्वास की. यहाँ के लोग किसी भी बहरी व्यक्ति से टच नहीं होना चाहते. अगर आपके बगल से निकल रहे हैं तो एकदम सहज होकर, संभल कर निकलेंगे। आप पैसे देंगे तो आप हाथ में सीधे नहीं दे सकते – आपको काउंटर पर पैसा रखना पड़ेगा! गांव के लोगों ने अपनी मान्यताएं, अपनी धरोहर और अपनी संस्कृति, संग अपनी भाषा को अभी तक अच्छे से पकड़ के रखा है. क्या पता यही सब इनको इनका प्राइड देता हो. बाहरी लोगों को यहां के मंदिरों में प्रवेश करने और छूने की भी मनाही है और ऐसा करते हुए पकड़े जाने पर जुर्माना भी है.
गाँव से वापस आकर हमने थोड़ा ढूँढा और पढ़ा कि आखिर क्या बकचोदी है. तो ये सब पता चला —
मलाणा गांव समुद्र-तल से करीब 2652 मीटर (8,701 फ़ीट) ऊपर बसा छोटा सा, पर न जाने कितना पुराना गाँव है. अब लोगों और पॉपुलर ओपिनियन की मानें, तो यहाँ 326 BC में सिकंदर की सेना की एक टुकड़ी ठहरी थी, पुरु की सेना के हाथों घायल होने के बाद. इन्हीं सैनिकों को तत्कालीन और फेमस मलाणा का वंशज माना जाता है. हालाँकि गाँव के मंदिर में रखी एक तलवार इस बात का एविडेंस मानी जाती है और इस बात के प्रमाण भी हैं की यह तलवार समकालीन है. पर इसके अलावा जेनेटिक प्रमाण जैसी चीज़ें न तो मिली हैं न ही इसके बारे में बात की जाती है. वाह रे सोशल मीडिया और इंटरनेट! कई सालों से मलाणा के ऊपर काम कर रहे फ़िल्म मेकर अम्लान दत्ता (जिनकी फ़िल्म Bom 2011 में आई थी) की माने तो कुछ हथियार पड़े हैं, लेकिन उनका कोई सॉलिड लिंक इस्टैब्लिश नहीं हुआ है. हमने गाँव में जितने भी लोगों से इस बारे में बात की, किसी को भी इसके बारे में कोई आईडिया नहीं था.
मलाणा के लोग कनाशी भाषा बोलते हैं. कनाशी इस गाँव के अलावा दुनिया में कहीं और नहीं बोली जाती. अब लेजेंड्स की सुने तो कहा जाता है कि गाँव के बाहर इस भाषा के बोलने पर प्रतिबन्ध है. उल्लंघन करने पर देस निकला भी हो सकता है. अब लॉजिक की बात! कनाशी साइनो-तिब्बतन लैंग्वेज फ़ैमिली की भाषा है. यह अनरिटेन भाषा है यानी कि इसका कोई लिखित फॉर्म नहीं है, माने कि आप कनाशी में लिख नहीं सकते. कनाशी भाषा पर Uppsala University, स्वीडन में अंजू सक्सेना रिसर्च कर रही हैं. अंजू एक लिंग्विस्ट हैं, उनकी माने तो यह सबसे अनडिस्क्राइबेबल भाषा है. मलाणा के आसपास के गाँवों में इंडो आर्यन फ़ैमिली की भाषाएँ बोली जाती हैं और कनाशी का इनसे कोई नाता रिश्ता नहीं है. अब इससे क्यूरिऑसिटी पैदा क्यों नहीं होगी? कौन से लोग हैं ये जिनकी भाषा न लिखी जा सकती है, न बताई जा सकती है और न कहीं और बोली जाती है.
तो कुल मिलकर मलाणा हमें ऐसी परिस्थितियों में बसे दूसरे या आसपास के पहाड़ी गाँवों से पहली नज़र में बिलकुल भी अलग नहीं दिखा — एक्सेप्ट फ़ॉर द अन-टचेबिलिटी पार्ट ! अब ये चीज़ कब से आई, क्यों इस की ज़रुरत पड़ी होगी इस कम्युनिटी को, क्यों अपने को इतना बचाकर रखना चाहते हैं ये लोग? वैसे इसका सीधा साधा आंसर हैश हो सकता है. एम्स्टरडम को दुनिया में माल फूंकने वालों के लिए मक्का माना जाता है. दुनिया भर का गांजा, हशीश आपको इस शहर में मिलेगा – यहाँ के कॉफ़ी शॉप्स में!
हाँ, तो बात ये है कि मलाणा का एक तोला (11 ग्राम) हशीश एम्स्टरडम में ढ़ाई सौ अमेरिकी डॉलर यानी कि अभी की वैल्यू के हिसाब से 17,962 रूपए का बिकता है. आपकी कम्युनिकेशन और इंटरपर्सनल स्किल आपको यही और इतना ही माल 400 – 500 रूपए में दिलवा सकती है – मलाणा गाँव में. कभी कभी तो मुफ़्त में भी, किसी खेत में ऐसे ही कोई काकी आपको आशीर्वाद दे देगीं!
पर बात धंधे की है और एक्सक्लूसिविटी मैंटेन करने की है, इसके इर्द गिर्द एक ऐसा परसेप्शन काफी चीज़ों के सीमलेस और स्मूथ फंक्शनिंग में हेल्पफ़ुल हो सकता है और है भी. तो क्यों न माना जाए कि ये सब बवाल इसीलिए रचा गया है! मानने की ही बात है. अब जब किसी मूर्ति में स्थापित, स्वर्गीय जमदिग्नी ऋषि लोगों से बात करके गाँव में रेस्टहॉउसेज़ बंद करवा सकते हैं तो कुछ भी माना जा सकता है.
जी हाँ! अब आप इस गाँव में रात में नहीं रुक सकते – ऑफिशियली! गाँव के शाशन तंत्र ने ऐलान किया है, अपने प्यारे जमलू ऋषि के नाम पर! वैसे ये अच्छा ही है – कुछ तो बकैती कम हुई. धंधा वैसे बराबर ही चल रहा होगा! ऐसी सेंसिटिव जियोग्राफी में इतने सारे लोगों को इतना ज़्यादा टाइम स्पेंड करना कहीं से भी सही नहीं था. टूरिज़्म इंड्यूस्ड कूड़ा भी बढ़ ही रहा था. खैर, आप ही डिसाइड करिए कि ये मिथ है या पॉपुलिज़्म या बकैती!