हिमाचल प्रदेश अपने मिस्टीक और वंडर्स की वजह से दुनिया भर में फेमस है. टाइटल भी वैसा ही दे रखा है – देव भूमि। देवताओं के पूजे और माने जाने का एकदम ही अलग कॉन्सेप्ट है. मज़ेदार ये है कि ये सभी देवता अपने गावों में ज़िंदा ऋषियों की तरह पूजे जाते हैं. मतलब अपने फॉलोवर्स के लिए ये देवता सोने, जागने, खाने, नाचने और हमारी आपकी तरह नेचर को एन्जॉय करने जैसे सारे काम करते हैं. ये गुस्सा भी होते हैं, नाराज़ भी होते हैं और कभी कभी तो भक्त अपने देवताओं से परिहास भी करते हैं.
सबसे बेसिक तो ये कि हर गाँव का अपना अलग देवता है. इनमें से कुछ देवताओं की यात्रा का स्वैग इस हद तक है कि मनाली की सर्दियों में कम से कम 9 गांवों के लोग तमाम तरह के मॉडर्न गैजेट्स जैसे TV, रेडियो, फ़ोन का इस्तेमाल बंद कर देते हैं. ऐसा माना जाता है कि इन गैजेट्स का नॉइज़ देवताओं को परेशान करता है — इस समय के उनकी स्वर्ग यात्रा में. इस यात्रा से लौटने पर देवता अपने ट्रिप की कहानी सुनाते हैं और उसके बाद होती हैं भविष्यवाणियाँ. ये सभी देवता अपनी शक्तियों के ज़रिए न्याय व्यवस्था बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं. इनमें से कुछ तो सुप्रीम कोर्ट की माफ़िक होते हैं — अब नारायण देव को ही ले लीजिए – पूरे कुल्लू में इनका ओहदा चीफ़ जस्टिस का है, लोग दूर दराज से इनके मंदिर आकर अपनी परेशानियों से छुटकारा पाते हैं और इनका फैसला फाइनल होता है.
तस्वीरों में सैंज वैली के शंगचूल महादेव का मैदान देखिये
ये सभी देवता काफी रंगीन साज सज्जा के शौक़ीन माने जाते हैं और कुछ की मूर्तियां तो 5 -6 किलो सोने से बानी हुई हैं. कुल्लू दशहरा में आपको हिमाचल के तमाम देवता अपने पूरे कुनबे के साथ मिलेंगे। लगभग ढाई सौ देवता कुल्लू मेले में जमा होते हैं – अपने राजा, रघुनाथ से मिलने को. अब कहने को तो ये मेला होता है पर सही कॉन्टेक्स्ट में देखा जाए तो, कम्युनिटी को जोड़े रखने का इससे बढ़िया साधन मिलना मुश्किल है.
इन देवताओं के परिवार होते हैं, दूर के रिश्तेदार भी होते हैं और ससुराल मायके वाले रिश्ते भी होते हैं. कुछ देवता ऐसे हैं जिनको हमारी आपकी तरह घूमने का कीड़ा है तो कुछ ऐसे हैं जिनके लिए अपने गाँव घर से बाहर निकलना पहाड़ जैसा काम है.
ये जो घूमने वाली प्रजाति के देवता हैं, इनमें से कुछ तो अपने ही गाँव के लोगों के घर आते जाते रहते हैं – सैर की तरह. फिर कुछ हैं जो लम्बी यात्राओं पर जाते हैं. कई यात्राएं तो ऐसी हैं जो हर 11 साल या 40 साल में एक बार होती हैं. जब ये देवता चलते हैं, तो अपने साथ पूरी डेलीगेशन लेकर चलते हैं. डेलीगेशन में मौजूद रहते हैं देवता के मैसेंजर, मैनेजर, कैशियर, प्रीस्ट, स्टोरकीपर, और एक पूरी की पूरी बैंड – समाज का क्लासिफिकेशन भी इधर ऐसा ही है — कैथ, कारदार, पुजारी, गूर, भंडारी और बजंत्री.
कुल्लू के ही बागा सराहन की हमारी यात्रा में हमें मिलने का मौका मिला बाबा चेतराम कैथ से। यहीं के हैं – गूर हैं। देवता संस्कृति में गूर, देवता के द्वारा नियुक्त किया गया गाँव का वह व्यक्ति होता है जो देवता का मेस्सेंजर होता है। गांव में देवता जो भी निर्देश देंगे, जिस बात की भी आगाही देंगे, किसी को सजा देंगे – सब गूर के ज़रिए. जब बाबाजी मिले तो बस गले लगा कर सर पर हाथ फेरते रहे. ऐसे लगा मानो ऊर्जा का कोई शांत स्वरूप प्रवाहित हो रहा हो. बाबा जी के पास अनंत और असीम कहानियां हैं. हर साल श्रीखंड महादेव यात्रा पर बाबा जी का लंगर लगता है. आप चाहें तो इनके साथ यात्रा पर निकल सकते हैं. और हां, बाबा चाय बहुत अच्छी पिलाते हैं. इधर जाना हुआ कभी तो बाबा जी से जरूर मिलिएगा, उनके घर पर. बाबा जी के होमस्टे में ही बागा सराहन वाला Bawray Banjaray Home है.
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जब आप घूमते हो तो आप लोगों से मिलते हो। हमें लगता है कि दुनिया के बनने से पहले से लेकर दुनिया के खत्म होने तक, इंसानी संस्कृति के इतिहास में अगर सबसे पवित्र चीजों की सूची बनाई जाएगी तो उसमें, दो नए लोंगों का पहली बार मिलने पर गले लगाने का ‘भाव’ होगा. सोचिए उस एक पल के बारे में जब आप ज़िन्दगी में पहली बार कसी से मिले और वो आपको भर पांच गले लगा ले. अजीब तो लगता है पहले कुछ पलों में लेकिन अचानक से मुन्ना भाई की झप्पी याद आती है और तब महसूस होता है इंसान होने का एक एहसास.
हिमाचली देव संस्कृति आपको सफल सामुदायिक व्यवस्था के कई केस स्टडीज़ से रूबरू कराती है. आपके पास हमारी फेवरेट देव भूमि से जुडी कोई कहानी हो तो हमसे ज़रूर बांटिए – नीचे कमेंट सेक्शन में!