पिछले दो दिनों की एडवेंचर को बीट करते हुए आज बाइक ने अगला लेवल पार किया. रामपुर बुशहर जाने वाली सड़क से नीचे उतारक कर बाईं और जाने सतलज के ऊपर बना पुल पार करके निरमण्ड जाने का रास्ता है. पुल पार करके रास्ता थोड़ा खराब है, बाएं हाथ पर दस बारह लेन के सड़क जितनी चौड़ी नदी बहती है और दाएं हाथ पर एकदम काले सूखे पहाड़. पल से आगे रास्ता ऊपर चढ़ता है.
“अबे थोड़ा आगे होकर बैठो” – Avenger के लम्बे और पीछे बैक रेस्ट होने की वजह से अक्सर पीलीअन राइडर पीछे तक लगाकर बैठ जाते हैं.
“अबे आगे ही तो हूँ, क्या हुआ ड्रैग आ रहा है?” – इतना सुनते ही Narry ने पीछे की हवा देखने को कहा!
लगातार तीसरी सुबह की शुरआत बिलकुल एक जैसे परिणाम के साथ हुई. 15 मिनट सर पकड़कर बैठने के बाद कुछ 5 घंटे तक इधर इधर भागने के बाद सड़क किनारे बैठे एक उस्ताद ने वॉल्व पिन के पास से फ़टी ट्यूब को ठीक करते हुए अपनी उस्तादी का ठप्पा लगाया — “अब ये दिल्ली तक वापस ले जाएगी, ट्रिप पूरी कर के जाइएगा”!
बागी पुल से आगे, बागा की तरफ जाने वाला रास्ता उस समय बन ही रहा था. पूरे स्ट्रेच पर रोड़े – पत्थर पड़े थे. एकाध बार बाइक पीछे भी ले गई हमें. लगभग पूरा दिन आती-जाती बारिश में पूछते पाछते कहीं शाम ढलने तक हम बागा पहुँचे. प्लान था कि किसी होमस्टे में रुका जाए क्योंकि हालत थोड़ी टाइट हो गई थी. जो होमस्टे पसंद आया उसके होस्ट किसी शादी में गए थे सो बिल्कुल ख़ालिस नए टेंट को ही चुना गया.
लोगों से मिलने पर पता चला कि मैदान में कैंप करने की पर्ची कटती है और जो पर्ची काटते हैं, वही भाई जी हो उस होमस्टे वाले भाई जी हैं. तो थोड़ी देर और घूमा गया, और लोगों से बात की गई. मैदान की एंट्री पर ही एक घर है. जिनका घर है उन भाई जी ने 100 रूपए में अपनी घर के पीछे कोने में टेंट लगाने का परमिशन दिया. यहाँ से पूरा मैदान आपको आपके टेंट से दिखेगा.
टेंट लगाते-लगाते जो बूँदे हवा में नमी बनकर अटकी हुई थी, अब तेज़ बारिश बनकर पड़ने लगी थी। भीगते-भीगते फटाफट किसी तरह टेंट में अंदर घुसकर कंबल पकड़ा और लेट गए. टेंट का फ़्रंट हमने खुला छोड़ा हुआ था: अंधेरे में बाहर कुछ दिख तो नहीं रहा था पर बाहर की ठंडी हवा, ज़मीन पर पड़ती बूँदों की आवाज़, और उससे उठती मिट्टी की ख़ुशबू — मानो सब मिलकर रात की कोई कहानी सी कह रहे हों. दिन भर की थकान में हम भी बस पड़े रहे और सुनते रहे बारिश से आती आवाज़ों को. कुछ देर बाद पेट ने आवाज़ लगाई. भूख लगी थी तो खाने का जुगाड़ करने के लिए बाहर निकलना पड़ा. तब तक बारिश भी थोड़ी मंदी हो चुकी थी. जिन भाई जी ने टेंट लगाने की जगह दी थी उनके घर पर साथ लाई गई मैगी बनवाई और तुरंत खा-पीकर टेंट में सेट हो गए. टेंट पर पड़ती हल्की बूँदों की पट-पट में कब नींद आयी याद नहीं है. अगले दिन सुबह जब बाहर निकलकर देखा तो सीन ये था।
ये नज़ारा है बागा सराहन के देवता (शाना ऋषि जी) के ग्राउंड से। माना जाता है की अज्ञातवास के समय कौरव यहीं रुके थे और यहाँ से कुछ दो किलोमीटर दूर पांडव, डियाउगी गाँव में.